गोंदिया – वैश्विक स्तरपर आज का वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पहले से कहीं अधिक द्रुत गति से बदल रहा है। भारत, रूस, चीन, मध्यपूर्व एवं दक्षिण-एशियाई अर्थतंत्र, और अमेरिका के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा एवं गठबंधनों का मिजाज बदल रहा है। उस बदलते परिदृश्य में यह कहावत- सच प्रतीत होती है कि “कल का हर वाक्या तुम्हारा था, आज दास्तान हमारी है।”इसे विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रम्प- रूस भारत चीन संदर्भ में प्रस्तुत किया है। अर्थात्, अमेरिका-केंद्रित वैश्विक व्यवस्था का प्रभुत्व कम हो रहा है और रूस भारत चीन उस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका ले रहा है, या कम-से-कम प्रयासरत है।मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र ऐसा मानता हूं कि क्या वास्तव में रूस भारत चीन भारत ऐसे राजनीतिक कदम उठाते जा रहे हैं जिनकी “गूंज” व्हाइट हाउस तक पहुँच रही है,या पहुँच सकती है ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। दशकों से हम देखते आ रहे हैं कि वैश्विक स्तरपर पारंपरिक रूप से,वैश्विक व्यापार और ऊर्जा सौदे प्रमुख रूप से यूनाइटेड स्टेट्स डॉलर में विनियोजित होते आए हैं,जिसने अमेरिका को न सिर्फ मुद्रा-बल बल्कि वैश्विक वित्त-सिस्टम में असाधारण प्रभुत्व प्रदान किया।लेकिन इस व्यवस्था में कई असंतुलन हैं,उभरती अर्थव्यवस्थाओं को डॉलर- निर्भरता के कारण विनिमय जोखिम, शुल्क- बाधाएं और नियंत्रणों का सामना करना पड़ता है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकार के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,क़्या ट्रम्प की टैरिफ पॉलिसी और भारत- रूस-चीनी मुद्रा- सहयोग की पहल वर्तमान डॉलर-मॉडल को “डीडॉलराइजेशन” की ओर ले जा रहे हैं ?बता दें क़ि इस आर्टिकल में दिए गए विचार संकेत- तथा दिशासूचक हैं, न कि पूर्णतया प्रमाणित ‘करार’ की तरह।
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साथियों बात अगर हम रूस भारत चीन एवं डॉलर- सत्तात्मक व्यवस्था क़े बदलते परिदृश्य में भारत की स्थिति समझने की करें तो,सबसे पहले हम उस बड़े प्रसंग पर दृष्टि डालते हैं जिसमें डॉलर की प्रभुता और उसकी चुनौती दोनों मौजूद हैं। वैश्विक रूप से डॉलर ने दशकों से मुख्य आरक्षित मुद्रा, व्यापार एवं पेट्रोलियम लेनदेन की प्रमुख मुद्रा, और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था की रीढ़ के रूप में काम किया है।लेकिन अब “डीडॉलराइजेशन” की दिशा में संकेत बढ़ रहे हैं: विशेष रूप से रूस-चीन-भारत जैसे देशों में जो अमेरिकी वेस्टर्न सिस्टम पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहते। भारत इस परिदृश्य में महत्वपूर्ण मोड़ पर है। भारत सरकार ने अपनी नीतियों में एक स्पष्ट संकेत दिया है कि भारत अपने मुद्रा-चयन, भुगतान व्यवस्था और विनिमय व्यवस्था में अधिक सक्रिय होना चाहताहै,विशेष रूप से यह कि सिर्फ डॉलर के सहारे नहीं रहें। उदाहरण के लिए, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने हाल में यूएई दिरहम और इंडोनेशियाई रुपिया के लिए रेफरेंस रेट फिक्स करने की घोषणा की है, जिसे “रुपये के टरनेशनलीसैशन” की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।iसंभवतः उन्होंने डॉलर प्रभुत्व को चुनौती देने की दिशा में महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम उठाए हैं।
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साथियों बातें अगर हम आरबीआई द्वारा रेफरेंस-रेट्स में बदलाव,भारत की मुद्रा और व्यापार रणनीति को समझने की करें तो,“आरबीआई ने यूएई व इंडोनेशिया की करेंसी के लिए रेफरेंस रेट फिक्स कर लिए हैं,इस अवसर पर यह जाना जाना महत्वपूर्ण है कि “रेफरेंस रेट” शब्द का क्या अर्थ है: यह उस मुद्रा के मुकाबले भारतीय रुपया का औपचारिक सार्वजनिक दर होता है, जिसे बैंक,व्यवसाय और एक्सपोर्ट- इम्पोर्ट कंपनियाँ उपयोग कर सकती हैं और जिससे विनिमय जोखिम कम होता है। यह कदम दो मायनों से रणनीतिक है:एक, यह व्यापारियों और एक्सपोर्ट- इम्पोर्टरों को डॉलर के जरिए जाने-माने मध्यस्थता (डॉलर – इंटरमीडिएशन) से बहुत हद तक मुक्त करता है। उदाहरण-स्वरूप, यदि भारत-यूएई व्यापार में दिरहम को सीधे रेफरेंस दर के तहत उपयोग कर सके, तो रुपया दिरहम या दिरहम रुपया लेनदेन आसान हो जाती है।यह मुद्रा- अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में संकेत देता है, यानें, भारत यह संदेश देना चाहता है कि रुपया सिर्फ घरेलू मुद्रा नहीं रहेगा, बल्कि व्यापारिक रूप से और वित्तीय रूप से विदेशों में अधिक स्वीकार्य हो सकेगा।
साथियों बात अगर हम रूस- भारत तेल लेनदेन एवं चीनी युआन-भुगतान क़े पहलू को समझने की करेंतो,रूसी तेल खरीदी में रूस ने भारत को चीनी करेंसी यूआन में भुगतान करने की सुविधा वाले इस बिंदु का विश्लेषण कुछ-सा जटिल है क्योंकि सच्चाई काफ़ी हद तक संकेतों पर आधारित है और अभी पूर्ण रूप से स्थापित नियम नहीं दिख रहे।मीडिया स्रोत बताते हैं कि रूस-भारत के बीच तेल लेनदेन में कुछ मामलों में चीनी युआन में भुगतान की मांग हो रही है। मीडिया में ऐसी जानकारी आई है कि जुलाई 2023 में हुआ एक समाचार था कि भारतीय रिफाइनर ने कुछ रूसी क्रूड के लिए युआन में भुगतान शुरू किया है। यानें रूस-भारत तेल लेनदेन में युआन में भुगतान मुमकिन हो रहा है और मांग हो रही है, लेकिन यह “स्वीकारात्मक रूप से स्थापित सुविधा” का मंच अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है और इसे “रूस ने भारत को चीनी युआन भुगतान की सुविधा दे दी है” के रूप में बहुत निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। हालाँकि संकेत स्पष्ट हैं कि ऐसा एक प्रारंभिक चरण है। इसका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यदि ऐसा स्थायी रूप ले लेता है, तो यह डॉलर-मध्यस्थता को कम कर सकता है और भारत- रूस- चीन के आर्थिक पैंतरे को बदल सकता है, जिससे अमेरिकी डॉलर की प्रभुता पर प्रश्नचिन्ह उठ सकता है।
साथियों बात अगर कर हम इस साल के अंत तक पुतिन-भारत यात्रा, तेल-डिफेंस गठजोड़ एवं डॉलर पर प्रभाव को समझने की करें तो,“इस वर्ष के अंत में व्लादीमिर पुतिन संभवतः भारत आ रहे हैं; तेल-डिफेंस में डील हो सकती है जिससे अमेरिका डॉलर पर प्रभाव पड़ेगा”। इस तरह का विश्लेषण वैश्विक रणनीति एवं भू-राजनीति कामिश्रण है।पहले यह देखना होगा कि क्या पुतिन की भारत यात्रा की पुष्टि हो चुकी है?यदि इस तरह का भारत- रूसटकराव व साझेदारी वास्तव में इस वर्ष के अंत या तदनंतर सक्रिय हो गई, तो यह अर्थ रखती है कि भारत एक भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार बनते हुए अमेरिका-मध्यस्थ वैश्विक व्यवस्था (जिसमें डॉलर की भूमिका केंद्रीय थी) से थोड़ा- बहुत विस्थापन कर सकता है। उदाहरण के रूप में,यदि भारत- रूस मिलकर ऐसे समझौते करें जिनमें डॉलर का उपयोग सीमित हो, तकनीकी-प्रतिरक्षा साझेदारी बढ़े, और ऊर्जा लेनदेन गैर-डॉलर में हों, तो इसका डॉलर-मुखी व्यवस्था पर दबाव बनने का अवसर है।पर यह भी याद रखना होगा कि “अमेरिका डॉलर पर असर” तुरंत नहीं आएगा,वैश्विक मुद्रा व वित्त व्यवस्था बड़ी और जटिल है। हालांकि संकेत मिल रहे हैं कि “बहुध्रुवीय” व्यवस्था की दिशा में कदम बढ़ रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, ब्रिक्स देशों में स्तरपर नए वित्तीय विपक्षी उपकरण परसटीक विचार हो रहे हैं। इसलिए यदि भारत-रूस तेल- डिफेंस गठजोड़ वास्तव में रूप लेता है, तो उस कदम की गूंज अमेरिक़ी – व्हाइट हाउस तक पहुँच सकती है।लेकिन इस बिंदु को “घटित असर पड़ा है” के रूप में नहीं बल्कि “हो सकता है असर पड़े” के युक्तिसूचक स्वर में लेना उचित होगा।
साथियों बात अगर हम अमेरिका में ट्रम्प के टैरिफ केस और भारत -दूरगामी प्रभाव को समझने की करें तो“नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में ट्रम्प टैरिफ पर सुनवाई होगी, लोअर कोर्ट पहले ही खारिज कर चुकी है।” जैसा हमने देखा, अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने 5 नवंबर को सुनवाई तय की है। निचली अदालतों (फेडरल सर्किट) ने ट्रम्प के बड़े टैरिफ- उपायों को अवैध पाया है। भारत-प्रसंग में इसका महत्व इसलिए है क्योंकि अमेरिका- केंद्रित वैश्विक व्यापार नियमों में बदलाव यदि आएँ, भारत को अवसर मिल सकता है कि वह तय कर सके अपने व्यापार मुद्राओं -भुगतान माध्यमों को पुनर्समायोजित करे। उदाहरण के लिए, यदि अमेरिकी टैरिफ नियम और वैश्विक व्यापार संरचना अधिक अनिश्चित हुई, तो भारत-रूस-चीन आदि साझेदारियों के लिए समय उपयुक्त बन सकता है। इस तरह, इस सुनवाई एवं निर्णय-परिणाम की गूंज भारत- नेताओं के रणनीतिक विकल्पों पर पड़ सकती है।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि क़्या ट्रम्प की टैरिफ पॉलिसी और भारत-रूस-चीनी मुद्रा- सहयोग की पहल वर्तमान डॉलर-मॉडल को “डीडॉलराइजेशन” की ओर ले जा रहे हैं ? भारत-अमेरिका क़ी आज भू-अर्थव्यवस्था में भारत- मॉडल की बढ़ती उपस्थिति को दर्शाती है-“कल का हर वाक्या तुम्हारा था,आज दास्तान हमारी है”
-संकलनकर्ता लेखक-कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतर्राष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि सीए(एटीसी) संगीत माध्यमा एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
