नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट परिसर में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश कर देशभर में सनसनी फैलाने वाले निलंबित वकील राकेश किशोर के खिलाफ अब आपराधिक अवमानना की कार्यवाही की मांग की गई है। इस संबंध में अटॉर्नी जनरल को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें किशोर पर न्यायालय की गरिमा भंग करने का आरोप लगाया गया है।
घटना के दौरान 71 वर्षीय किशोर को सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा टीम ने तुरंत काबू में कर लिया था। इसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने उन्हें निलंबित कर दिया।
घटना के एक दिन बाद समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में किशोर ने कहा कि उनका कदम गुस्से में नहीं बल्कि भावनात्मक आघात के कारण उठाया गया। उन्होंने बताया,
“16 सितंबर को मैंने सीजेआई की अदालत में एक जनहित याचिका दायर की थी। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कथित रूप से मेरा मज़ाक उड़ाया और कहा – ‘जाओ, मूर्ति से कहो कि वह अपना सिर वापस लगा दे।’ यह सुनकर मैं भीतर तक आहत हुआ।”
किशोर ने कहा कि उनका कोई राजनीतिक जुड़ाव या आपराधिक इतिहास नहीं है, बल्कि वह हिंदू धार्मिक परंपराओं में बार-बार होने वाले न्यायिक हस्तक्षेप से व्यथित हैं। उन्होंने कहा,
“मैं हिंसा के सख्त खिलाफ हूं, लेकिन सवाल यह है कि एक अहिंसक व्यक्ति को ऐसा कदम क्यों उठाना पड़ा? जब भी हमारे सनातन धर्म से जुड़े मामले आते हैं – चाहे जल्लीकट्टू, दही-हांडी या अन्य परंपराएं हों – अदालतें हस्तक्षेप करती हैं। जबकि अन्य समुदायों के मामलों में न्यायपालिका का रवैया अलग दिखाई देता है।”
किशोर ने हल्द्वानी रेलवे ज़मीन विवाद और नूपुर शर्मा केस का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें अक्सर “धर्म विशेष” से जुड़े मामलों में दोहरे मापदंड अपनाती हैं।
अब कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अटॉर्नी जनरल अनुमति देते हैं, तो राकेश किशोर के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है, जो उन्हें कठोर दंड तक पहुँचा सकता है।
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