
नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) राज्यपालों के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि विधानसभा द्वारा किसी विधेयक को पुनः पारित कर राज्यपाल के पास भेजा जाता है, तो राज्यपाल उस विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार हेतु नहीं भेज सकते।
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर सीमित विकल्प दिए गए हैं।
पीठ ने कहा कि राज्यपाल किसी भी विधेयक पर—
- अपनी अनुमति प्रदान कर सकते हैं,
- अनुमति रोक सकते हैं,
- राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकते हैं, या
- पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेज सकते हैं (धन विधेयक को छोड़कर)।
लेकिन यदि विधानसभा उस विधेयक को दोबारा पारित कर राज्यपाल को भेज देती है, तो उस स्थिति में राज्यपाल के पास केवल दो ही विकल्प बचते हैं—या तो वह अपनी अनुमति दें या उसे रोक लें। ऐसे में राज्यपाल उस विधेयक को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी सवाल किया कि राज्यपालों द्वारा विधेयकों को रोककर रखने या राष्ट्रपति को भेजने की प्रक्रिया पर स्पष्टता क्यों नहीं है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भविष्य में राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति को स्पष्ट दिशा देगी और संवैधानिक प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाएगी।