Tuesday, October 14, 2025
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धरतीपुत्र से ग़ज़ल सम्राट तक 10 अक्टूबर की अमर यादें

10 अक्टूबर : विदा हुए वो सितारे, जिन्होंने युगों तक छोड़ी अपनी अमिट छाप

इतिहास के पन्नों में 10 अक्टूबर का दिन केवल घटनाओं और जन्मदिवसों के लिए नहीं, बल्कि उन विभूतियों की स्मृति के लिए भी अंकित है, जिन्होंने अपने कर्म और व्यक्तित्व से भारत ही नहीं, विश्व के सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया। आज का दिन हमें उन प्रेरक हस्तियों की याद दिलाता है, जिनका निधन इसी तिथि को हुआ—मुलायम सिंह यादव, जगजीत सिंह, मनोरमा, एस. आर. बोम्मई, रूबी मेयर्स और लुडमिला पावलीचेंको जैसी शख्सियतें जिनकी विरासत आज भी जीवित है।
🌹 मुलायम सिंह यादव (1939 – 2022)
समाजवाद के पुरोधा और किसानों की आवाज़
मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के सैफई गाँव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा सैफई में पूरी करने के बाद उन्होंने के.के. कॉलेज, इटावा और ए.के. कॉलेज, शिकोहाबाद से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले मुलायम सिंह ने जल्द ही राजनीति को अपनी जीवनधारा बना लिया।
उन्होंने राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारों को अपनाया और किसानों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ को सशक्त किया। 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। 1989, 1993 और 2003 में तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1996 में वे भारत के रक्षा मंत्री भी बने।
उनका जीवन संघर्ष, सादगी और जनसेवा का प्रतीक था। “धरतीपुत्र” कहलाने वाले मुलायम सिंह यादव ने भारतीय राजनीति में समाजवाद की एक सशक्त धारा स्थापित की। 10 अक्टूबर 2022 को उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन उनके विचार आज भी समाजवादी राजनीति के स्तंभ बने हुए हैं।
🎭 मनोरमा (1937 – 2015)
दक्षिण भारतीय सिनेमा की ‘हास्य रानी’
मनोरमा का जन्म 26 मई 1937 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ था। असली नाम गोपालरतम था, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में वे ‘मनोरमा’ नाम से प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत स्टेज से की और फिर तमिल फिल्मों में हास्य और चरित्र भूमिकाओं से दर्शकों का दिल जीत लिया।
करीब 1500 से अधिक फिल्मों में अभिनय करने वाली मनोरमा ने तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिंदी फिल्मों में भी काम किया। राजनीति, शिवाजी गणेशन और जयललिता जैसे बड़े अभिनेताओं के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों को खूब भाती थी।
मनोरमा ने अपनी अभिनय प्रतिभा से साबित किया कि सिनेमा में स्त्री केवल ‘नायिका’ नहीं, बल्कि ‘चरित्र’ की आत्मा भी हो सकती है। 10 अक्टूबर 2015 को उनका निधन हुआ, पर उनकी जीवंत भूमिकाएँ आज भी सिनेप्रेमियों के मन में बसती हैं।
🎼 जगजीत सिंह (1941 – 2011)
ग़ज़लों के ‘सम्राट’ जिनकी आवाज़ अब भी गूंजती है
जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। उनका नाम संगीत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। उन्होंने ग़ज़लों को आम लोगों तक पहुँचाने का जो कार्य किया, वह असाधारण था।
उनकी ग़ज़लें — होठों से छू लो तुम, झुकी झुकी सी नज़र, वो कागज़ की कश्ती, तुमको देखा तो ये ख़याल आया — भावनाओं और सुरों का ऐसा संगम हैं जो दिलों को छू जाते हैं।
पत्नी चित्रा सिंह के साथ उनकी जोड़ी संगीत जगत की एक मिसाल बनी। उन्होंने कई पीढ़ियों को ग़ज़ल की नर्म लय और संवेदना से जोड़ दिया।
10 अक्टूबर 2011 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी आवाज़ आज भी रेडियो, मंच और दिलों में गूंजती है। वे केवल गायक नहीं, एक संवेदनशील कवि, संगीतकार और भावनाओं के शिल्पी थे।
🏛️ एस. आर. बोम्मई (1924 – 2007)
भारतीय राजनीति के संवैधानिक प्रहरी
सोमनहल्ली रामैया बोम्मई का जन्म 6 जून 1924 को कर्नाटक में हुआ। वे जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता और कर्नाटक के मुख्यमंत्री (1988–1989) रहे।
उनका नाम भारतीय संवैधानिक इतिहास में “एस. आर. बोम्मई केस” के कारण अमर है। यह मामला भारतीय संघीय ढांचे और राज्यों की सरकारों के बर्खास्तगी के अधिकारों से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में इस केस के माध्यम से ऐतिहासिक फैसला दिया कि राष्ट्रपति शासन लगाने में मनमानी नहीं हो सकती।
एस. आर. बोम्मई का यह योगदान भारतीय लोकतंत्र की नींव को और मज़बूत करता है। उनके पुत्र बसवराज बोम्मई बाद में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। 10 अक्टूबर 2007 को एस. आर. बोम्मई का निधन हुआ, लेकिन उनके संवैधानिक योगदान हमेशा भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अमर रहेंगे।
🎬 रूबी मेयर्स (1909 – 1983)
‘सुलोचना’ — भारतीय सिनेमा की पहली सुपरस्टार
रूबी मेयर्स, जिन्हें सिनेमा जगत ‘सुलोचना’ के नाम से जानता है, भारतीय फ़िल्म उद्योग की शुरुआती महिला सुपरस्टार थीं। उनका जन्म 1909 में पुणे में हुआ था।
1920 और 1930 के दशक में जब फ़िल्मों में महिलाएँ बहुत कम थीं, तब रूबी मेयर्स ने पर्दे पर स्त्री की मजबूत और सशक्त छवि प्रस्तुत की। मधुरी, अनारकली और Indira M.A. जैसी फिल्मों से उन्होंने न केवल लोकप्रियता पाई बल्कि आने वाली पीढ़ियों की अभिनेत्रियों के लिए राह बनाई।
सुलोचना ने मूक फिल्मों से लेकर टॉकी सिनेमा तक अपनी छाप छोड़ी। 1973 में उन्हें भारतीय सिनेमा के योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 10 अक्टूबर 1983 को उन्होंने अंतिम सांस ली, लेकिन वे भारतीय सिनेमा की नींव में सदैव जीवित हैं।
🪖 लुडमिला पावलीचेंको (1916 – 1974)
द्वितीय विश्वयुद्ध की ‘स्नाइपर क्वीन’
लुडमिला मिखाइलोव्ना पावलीचेंको का जन्म 12 जुलाई 1916 को यूक्रेन में हुआ था। वे सोवियत रेड आर्मी की सबसे प्रसिद्ध महिला स्नाइपर थीं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने 309 जर्मन सैनिकों को निशाना बनाया—यह संख्या उन्हें विश्व की सबसे सफल महिला स्नाइपरों में शामिल करती है।
युद्ध के बाद उन्होंने सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व अमेरिका और अन्य देशों में किया, जहाँ वे महिला सशक्तिकरण और शांति का प्रतीक बनीं। उन्हें “लेडी डेथ” के नाम से भी जाना जाता था।
10 अक्टूबर 1974 को उनका निधन हुआ, पर वे आज भी साहस, नारी शक्ति और देशभक्ति की मिसाल हैं।
10 अक्टूबर केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि यह उन असाधारण व्यक्तित्वों की याद का प्रतीक है जिन्होंने अपने क्षेत्र में इतिहास रचा।
राजनीति, सिनेमा, संगीत, युद्ध और समाज—हर क्षेत्र में इन महान आत्माओं ने अमर योगदान दिया।
वे चले गए, पर उनकी धरोहर हमें यह सिखाती है कि जीवन की असली जीत संघर्ष, सेवा और सृजन में है।

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