मानस पटल पर गूंजती यादें: 27 अक्टूबर को स्वर्गवास पाने वाले महान् विभूतियों का श्रद्धांजलि-संकलन
आज हम 27 अक्टूबर के दिन (विभिन्न वर्षों में) स्वर्गवास पाने वाले छह महान् विभूतियों — उनके जीवन-संदर्भ, शिक्षा-प्रशिक्षण, योगदान एवं विरासत — को विविध एवं व्यापक रूप से स्मरण कर रहे हैं। इस लेख में प्रत्येक पर लगभग 100-150 शब्दों में प्रकाश डालते हुए, उनके जन्म-स्थान, शिक्षा-भूमि, प्रमुख उपलब्धियों आदि का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
- ब्रह्मबांधव उपाध्याय (1861-1907)
ब्रह्मबांधव उपाध्याय का जन्म 11 फरवरी 1861 को बंगाल प्रेसीडेंसी के होगली ज़िले के खनयान गाँव में हुआ था। उनके पिता देविचरण बांड्योपाध्याय ब्रिटिश शासित पुलिस व्यवस्था में पदस्थ थे, परंतु ब्रह्मबांधव बचपन में ही माँ खो बैठे और उनकी शिक्षा-परवरिश दादाजी व अन्य परिजन द्वारा हुई। उन्होंने होगली कॉलेगिएट स्कूल तथा कॉलकाता के जेनेरल असेंबली्स इंस्टिट्यूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में शिक्षण ग्रहण किया। शिक्षा के दौरान ही उन्होंने स्वामी विवेकानंद के सहपाठियों में स्थान पाया तथा बाद में ब्रह्मो समाज से जुड़े। उनके इन वैचारिक पृष्ठभूमियों ने भारतीय धर्म-संज्ञा व राष्ट्रीय चेतना के संगम में उनका योगदान सुनिश्चित किया। उन्होंने ‘ट्वेंटीथ सेंचुरी’ नामक मासिक पत्रिका प्रकाशित की तथा आधुनिक शिक्षा-वेदांत के आदर्शों के अनुरूप स्कूल-संस्थान स्थापित किए। 27 अक्टूबर 1907 को कालकत्ता में उनका निधन हुआ। उनकी संघर्षशील सोच, धार्मिक समन्वय-दृष्टि तथा स्वराज-चेतना आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। -
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- दिवान रंजीत राय (1913-1947)
दिवान रंजीत राय का जन्म 6 फरवरी 1913 को पंजाब प्रांत के गुजरानवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने बिशप कॉटन स्कूल, शिमला से शिक्षा ली और बाद में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में प्रथम-पाठ्यक्रम में शामिल हुए। स्वतंत्र भारत के प्रथम युद्ध-परिस्थितियों में उन्होंने 1 सिख रेजिमेंट की कमान संभाली और 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के पतन क्षेत्र में नेतृत्व करते हुए वीरगति प्राप्त की। उन्हें भारत का पहला “महावीर चक्र” प्राप्तकर्ता माना जाता है। उनके निस्वार्थ बलिदान ने भारतीय सेना में ‘इन्फैंट्री दिवस’ की प्रासंगिकता स्थापित की है। - ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह (1899-1947)
ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह (जम्वू एवं कश्मीर राज्य सेना) का जन्म 14 जून 1899 को जम्मू जिले के बगोना (अब राजिंदरपुरा) में हुआ था। उन्होंने प्रिंस ऑफ़ वेल्स कॉलेज, जम्मू से शिक्षा प्राप्त की और 1921 में कश्मीर सेना में शामिल होकर 1947-48 के प्रथम भारत-पाक युद्ध में अपनी भूमिका निभाई। 26/27 अक्टूबर 1947 की रात को उन्होंने सीमित संसाधनों में कश्मीर घाटी के द्वारों पर घुसपैठियों को रोका एवं अन्ततः शहीद हो गए। उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। उनकी दृढ़ता, वीरता एवं सम्मान आज भी कश्मीर रक्षा-कथा के पृष्ठों में सुनहरे अक्षरों में अंकित हैं। - मदन लाल खुराना (1936-2018)
मदन लाल खुराना का जन्म 15 अक्टूबर 1936 को ब्रिटिश भारत के लाइलपुर (अब पाकिस्तान के फैसलाबाद) में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आकर दिल्ली-पाक्षिक जीवन में स्थापित हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोरी माल कॉलेज से स्नातक किया। राजनीति में उन्होंने प्रवेश किया और 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। ‘दिल्ली का शेर’ के नाम से लोकप्रिय खुराना ने राष्ट्रीय राजधानी में बुनियादी बदलाव, शहरी विकास तथा पार्टी निर्माण-कार्य को आगे बढ़ाया। 27 अक्टूबर 2018 को उनका निधन हुआ। उनकी उद्देश्य-परक राजनीति और सामाजिक प्रतिबद्धता आज भी अनेक लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। - राष्ट्रीय स्वाभिमान तख्ते पर खड़े ‘महावीर चक्र’‑वीर ब्रिगेडियर्स
(विशिष्ट नाम न मिलने के कारण इस खंड में सिर्फ संकेत रूप से अंकित)
इस दिन के इतिहास में 27 अक्टूबर 1947 के युद्ध-घटनाओं से जुड़े अन्य वीरों की उपस्थिति प्रकट होती है, जिनमें “महावीर चक्र”-से सम्मानित सैन्य अधिकारी शामिल हैं। विशेष रूप से 1 सिख रेजिमेंट के Lt. Col. देवान् रंजीत राय तथा ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह ने इस=date को भारत-रक्षा-इतिहास में अमर कर दिया। उनकी कुर्बानी हमें ‘कर्तव्य’, ‘शौर्य’ और ‘निवेदित सेवा’ के मूल्यों की याद दिलाती है। - (अन्य उल्लेखनीय व्यक्तित्व)
(सूचीबद्ध अन्य नामों में – जैसे टी. एस. एस. राजन, प्यारे लाल, विजय मर्चेन्ट, बी. बी. लिंगदोह आदि – दुर्लभ स्रोत-साक्ष्यों के कारण विस्तृत शिक्षा-वृत्तांत एवं योगदान-विवरण के साथ प्रस्तुत करना संभव नहीं हुआ। इस लेख में प्रमुख एवं प्रमाणित स्रोतों वाले व्यक्तित्वों को प्राथमिकता दी गई है।)
27 अक्टूबर का दिन इतिहास-पटल पर वीरता, त्याग, नेतृत्व एवं सामाजिक-राष्ट्रीय सिद्धांतों के प्रतीक-दिन के रूप में अंकित है। इन व्यक्तियों ने-– वैश्विक शिक्षा-प्रसार, राष्ट्रीय स्वतंत्रता-संग्राम, सैन्य-शौर्य, लोक-सेवा एवं राजनीतिक-निर्धारण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया। उनके जन्म-स्थान, शिक्षा-वृत्त एवं जीवन-यात्रा हमें यह सिखाती है कि व्यक्तिगत लक्ष्य-परिवर्तन, समय-प्रेरणा एवं सामाजिक उत्तरदायित्व से किस प्रकार समाज-परिवर्तन संभव है।
इन महान् विभूतियों की याद हमें प्रेरित करती है कि हम अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट-प्रयास करें, जीवन-दायित्व समझें और आने वाली पीढ़ियों को बेहतर समाज-निर्माण की ओर अग्रसर करें।