Thursday, November 20, 2025
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वर्षों से जमे फॉरेस्टर गार्ड और बाबूओं पर सवाल, ग्रामीणों ने डीएम से की कार्रवाई की मांग

सोहगीबरवां वन्यजीव प्रभाग महराजगंज में ट्रांसफर नीति की खुलेआम अनदेखी

महराजगंज(राष्ट्र की परम्परा)। सोहगीबरवां वन्यजीव प्रभाग के विभिन्न वन रेंजों में वर्षों से एक ही स्थान पर जमे फॉरेस्ट गार्ड और दफ्तर के बाबूओं की तैनाती को लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि वन विभाग सरकार की ट्रांसफर नीति की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए उन्हीं कर्मचारियों को सालों-साल एक ही रेंज में बनाए रखता है, जिन पर लकड़ी तस्करी जैसे गंभीर आरोप लगते रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि शासन की स्पष्ट गाइडलाइन है कि कोई भी कर्मचारी तीन वर्ष से अधिक एक ही तैनाती स्थल पर नहीं रह सकता, लेकिन वन विभाग में यह नियम सिर्फ कागजों तक सीमित है। दक्षिणी चौक, उत्तरी चौक, निचलौल, मधवलियां और लक्ष्मीपुर रेंज में कई फॉरेस्टर और फॉरेस्ट गार्ड छः से दस वर्षों से जमे हुए हैं। ग्रामीणों का दावा है कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के कारण इन्हें न हटाया जाता है, न ही इनके खिलाफ कार्रवाई होती है। वही लकड़ी तस्करी पर संरक्षण के आरोप लगाया जा रहा है और, केवलापुर के दो पेड़ कटने का मामला ताजा उदाहरण बन गया है। ग्रामीणों ने बताया कि हाल ही में लक्ष्मीपुर रेंज के केवलापुर चौकी के पास दो साखू के पेड़ काटे गए थे। मामले के खुलासे पर विभाग ने दिखावे के तौर पर तत्कालीन फॉरेस्टर को हटाया, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि कुछ दिनों बाद उसे उसी रेंज में पुनः बहाल कर दिया गया। ग्रामीणों ने इसे औपचारिक कार्रवाई और कोरम पूर्ति बताते हुए कहा कि यह सब उच्चाधिकारियों की मौन सहमति के बिना संभव नहीं है।
ग्रामीणों का आरोप है कि वर्षों से जमे कर्मचारी वन माफियाओं से सांठ-गांठ कर अवैध लकड़ी कटान और तस्करी को बढ़ावा दे रहे हैं। बदले में इन कर्मचारियों द्वारा लाभांश विभाग के ऊपरी अफसरों तक पहुंचाया जाता है, जिससे इनके खिलाफ कार्रवाई होना लगभग असंभव हो जाता है।
क्षेत्रीय ग्रामीण सुधीर मनोज, सुशील, विमला देवी, मंजू सोनी, उर्मिला, राहुल, मनोहर और संगीता सहित अनेक ग्रामीणों ने जिलाधिकारी महराजगंज को लिखित शिकायत देकर वन विभाग में वर्षों से जमे कर्मचारियों का तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर करने की मांग की है। ग्रामीणों ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यदि शासन प्रशासन ने जल्द कार्रवाई नहीं की तो उन्हें आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग की उदासीनता के कारण क्षेत्र में लकड़ी तस्करी चरम पर है, और विभागीय संरक्षण के बिना यह संभव नहीं है।
इस संबंध में डीएफओ निरंजन सुर्वे से मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। इससे ग्रामीणों के आरोप और भी मजबूत होते दिख रहे हैं।

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