November 22, 2024

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वाइब्रेंट बॉर्डर योज़ना से बौखलाया विस्तारवादी देश

गोंदिया Rkpnews – वैश्विक स्तरपर यह एक आम बात है कि दुनिया का कोई भी दे अगर तेजी से विकास कर रहा है, एक सशक्त नेतृत्व हो रहा है, अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है और सबसे महत्वपूर्ण बात रक्षा क्षेत्र में तेज़ी से नए प्रौद्योगिकी से उन्नति हो रही है तथा बॉर्डर छेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास, सेना का विकसित देशों से अभ्यास, रक्षा क्षेत्र में अधिक बजट एलोकेशन सहित कुछ महत्वपूर्ण हलचलें होती है तो स्वाभाविक रूप से दुनिया की नजरें उस देश पर आ जाती है कि आखिर किस प्रकार की मज़बूत रणनीति के तहत काम किया जा रहा है? क्या यह रणनीति हमारे देश में भी लाई जा सकती है? परंतु सबसे अधिक नजरें बॉर्डर से सटे देश द्वारा उठ जाती है कि उनके लिए यह गतिविधियां कितनी नुकसान देह होगी? बस!! यहीं से तवांग की घटना का पहिया पढ़ना शुरु हुआ है ऐसा मेरा मानना है। क्योंकि पीएम महोदय ने अनेक मंचों में वाइब्रेंट बॉर्डर कार्यक्रम को तेज़ी से विकसित करने की बात कही है जिससे हमारे बॉर्डर क्षेत्र के गांव का विकास होगा और वह पर्यटन क्षेत्र होने से लोगों की आवाजाही बढ़ेगी। चूंकि बॉर्डर छेत्र कान और आंख होते हैं, उसके नागरिकों को पलायन से बचाया जा सकता है और तवांग सहित अनेकों बॉर्डरों के इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हो रहा है, जिससे पड़ोसी और विस्तारवादी देश के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही है।घुसपैठ में दिक्कत खड़ी हो रही है, परिणाम स्वरूप छठिवीं बार ऐसी स्थिति बनी है ऐसा मेरा मानना है। चूंकि तवांग घटना पिछले 9 दिसंबर को हुई थी और अभी शीतकालीन संसदीय सत्र में 17 विपक्षी पार्टियों और सरकार केबीच तनातनी के चलते संसद बाधित हो रही है और टीवी चैनलों में दिखाया जा रहा है कि आज 17 विपक्षी पार्टियों ने संसद का बहिष्कार कर वकआउट किया, तो आज मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से हम चर्चा करेंगे,वाइब्रेंट बॉर्डर योजना से विस्तारवादी देश बौखलाया! 

साथियों बात अगर हम संसद के शीतकालीन सत्र में बाधा की करें तो विपक्ष एकजुट होकर तवांग मामले पर चर्चा चाहता है, परंतु सरकार का मत है कि एक बार जब केंद्रीय रक्षा मंत्री ने बयान दे दिया है तो बात स्थगित हुई, चर्चा में ऐसे कई मुद्दे उठेंगे जिसकी चर्चा सार्वजनिक नहीं कर पाएंगे जो वैश्विक पटल पर इनफेक्ट होगा, ऐसा बयान सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता द्वारा आया है। जबकि विपक्ष चर्चा पर अड़ा हुआ है।इस बीच अमेरिका के पेंटागन, र्व्हाइट हाउस और अन्य एक से मिलाकर तीनों जगहों से बयान भारत के समर्थन में आया है, जो बहुत कमबार होता है कि तीन स्थानों से बयान आए पर आज ऐसा हुआ जो भारत के लिए सकारात्मक बात है। 

साथियों बात अगर हम विस्तार वादी देश से तवांग के पूर्व की झड़पों की करें तो भारत विस्तारवादी देश सीमा के शांति के लिए कई समझौते हुए हैं, इसके बावजूद वह बार बार इसका उल्लंघन करता है।पिछले 60 सालों में यह छठवीं बार है, जब उनके सैनिकों के साथ हिंसक झड़प हुई है। तवांग से पहले की झड़पें(1) नाथु ला दर्रा (1967)- 1962 युद्ध के 5 साल बाद ही चीन ने सिक्किम के नाथु ला दर्रा में हमला कर दिया था।भारतीय सैनिक उस वक्त नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर की मैपिंग कर रही थी।दोनों देशों के सैनिकों के बीच करीब 20 दिन तक यह लड़ाई चली थी। इस लड़ाई में भारत के करीब 80 सैनिक शहीद हुए थे। चीन को इसमें भारी नुकसान हुआ और उसके करीब 400 सैनिक मारे गए थे। (2) तुलुंग (1975)- अरुणाचल के तुलुंग में असम राइफल्स के जवान गश्ती कर रहे थे। इसी दौरान चीन ने हमला कर दिया था। भारतीय जवानों ने भी चीन के इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब दिया था,हालांकि, इस हिंसा में 4 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।रिपोर्ट के मुताबकि तुलुंग ला के पास एलएसी के 500 मीटर अंदर चीनी सैनिकों ने उस वक्त पत्थर गाड़ दिए थे, जिसे हटाने असम राइफल्स के जवान पहुंचे थे।उसी दौरान घात लगाकर चीन ने फायरिंग कर दी थी। एलएसी सीमा पर गोलीबाजी की यह अंतिम घटना थी(3)तवांग (1987)- चीन में उस वक्त ली जिनियांग सत्ता में थे और चीन विस्तारवाद के रास्ते पर चलने की तैयारी कर रहा था।ऐसे में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में दोनों देशों की सैनिकों में टकराव हो गया था।भारत ने पहले से यहां जवानों की तैनाती कर रखी थी। तवांग के आसपास गोरखा राइफल्स के करीब 200 जवान तैनात किए गए थे। भारत ने टकराव के हालात को देखते हुए एमआई-26 हेलिकॉप्टर भी तैनात कर दिया था।करीब 9 महीने तक बॉर्डर पर दोनों देशों के बीच तनाव जारी रहा था।भारत ने इस दौरान अरुणाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दे दिया था। मई 1987 में बीजिंग में दोनों देशों के विदेश मंत्री की बैठक के बाद हालात स्थिर हुए थे।(4) डोकलाम (2017)- डोकलाम के पहाड़ पर चीन, भारत और भूटान की सीमा मिलती है।18 जून 2017 को 300 भारतीय सैनिकों ने चीन को सड़क बनाने से रोक दिया था। इसके बाद करीब 75 दिनों तक यहां विवाद की स्थिति बनी रही थी। इस दौरान कई बार जंग जैसे हालात भी बने, मगर भारतीय सैनिक सीमा पर डटे रहे थे। आखिर में समझौते के तहत अगस्त 2017 में दोनों देशों ने अपनी सेनाएं पीछे हटाने का फैसला लिया था (5) गलवान (2020)- लद्दाख के गलवान में 15 जून को भारत और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। करीब 8 घंटे तक चले इस खूनी टकराव में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए थे। ऑस्ट्रेलिया की न्यूज साइट ‘द क्लैक्सन’ की इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसा में चीन के 38 जवान मारे गए थे।हालांकि, चीन ने सिर्फ 4 जवान के मौत की पुष्टि की थी।(6)तवांग (2022)- तवांग में 9 दिसंबर को भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई।इसमें 6 भारतीय सैनिक घायल हुए हैं।हांगकांग मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसक टकराव में चीन के 20 जवान भी घायल हुए हैं यह जानकारी मीडिया में आई है। 

साथियों बात अगर हम तवांग की अनुमानित जड़ वाइब्रेंट बॉर्डर की करें तो, यह देश के सुदूर इलाकों के गांव जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े हुए हैं उनको विकसित कर उन्हें टूरिज्म डेस्टिनेशन बनाने की दिशा में तेजी से काम करना है ताकि वह गांव समृद्ध होंगे वहां रोजगार बड़े, इसके इन्वेस्टमेंट आए वाणिज्यिक गतिविधियां बड़े जिससे गांव से पलायन में भारी कमी आएगी और बॉर्डर से जुड़े पड़ोसी और विस्तारवादी देश पर भी असर पड़ेगा। क्योंकि कहा जाता है कि बॉर्डर से जुड़े गांव कान और आंख का काम करते हैं। इसीलिए ही हमारे माननीय पीएम ने एक बैठक में वाइब्रेट बॉर्डर पर कहा है कि स्नेह मिलन और वाइब्रेंट बॉर्डर टूरिज्म पर फोकस करना चाहिए। उन्होंने कहा कि काशी- तमिल संगम की तर्ज पर वाइब्रेंट बॉर्डर टूरिस्ट को बढ़ावा देने की भी बात कही, उनका मानना है कि सुदूर बॉर्डर इलाके मुख्यधारा से जुड़े रहें और वहां के लोगों से सभी का संपर्क बना रहे, इसको लेकर भी प्रयास किए जाने चाहिए।वाइब्रेंट बॉर्डर और विलेज टूरिज्म के तहत गांव के लोगों के साथ सीधे संबंध और पारंपरिक रूप से मिलने का कार्यक्रम रखें। 

साथियों बता दे कि केंद्र सरकार विलेज टूरिज्म पर भी फोकस कर रही है। इसके तहत सरकार देश के ग्रामीण इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना पर काम कर रही है। इससे ना सिर्फग्रामीण युवाओं का शहरों में पलायन रुकेगा बल्कि शहरों पर बढ़ रहा दबाव भी कुछ हद तक कम रहेगा। यही वजह है कि केंद्र सरकार इन योजनाओं पर खास फोकस कर रही है। उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा पर बसे उन गांवों को देखें तो, वीरान हो चुके हैं। सीमा पर बसे गांवों को देश की आंख-कान और नाक माना जाता है। वीरान हो चुके 500 से ज्यादा गांवों को सरकार दोबारा बसा रही है। इन गांवों को फिर से रहने लायक बनाने, पलायन रोकने और पर्यटकों को सीमा के आखिरी गांवों की सैर कराने के लिए सरकार एक नयी योजना पर काम कर रही है, जिसका नाम है वाइब्रेंट बॉर्डर विलेज इन गांवों में नागरिक प्रहरी नियुक्त किए जाएंगे।जिसमें विस्तारवादी देश को चुनौतियां नजर आने लगी। 

साथियों बता दें कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम का ऐलान किया था, जिसमें सीमा पर बसे गांवों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करने पर फोकस किया जाएगा। खासकर चीन सीमा से लगते गांवों पर सरकार का खास फोकस है. दरअसल सीमाई गांवों में हाल के वर्षों में पलायन बढ़ा है, जिससे सीमा की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है। बता दें कि सीमा पर बसे गांव पारंपरिक रूप से लाइन ऑफ डिफेंस के तौर पर काम करते हैं। सरकार ने बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन का बजट भी बढ़ा दिया है, जिससे सीमाई इलाकों में सड़कों का निर्माण तेजी से हो सके। साथ ही सरकार इन सीमाई गांवों में बिजली, पानी, नेटवर्क आदि की सुविधा देने की भी तैयारी कर रही है।उल्लेखनीय है कि चीन की सरकार ने भारत से लगती सीमा पर सैंकड़ों गांवों को बसाया है। अब भारत सरकार भी इस योजना को लेकर गंभीर है। इसीलिए जी-20 के कारण पर्यटन क्षेत्र में किए जा रहे तेजी से विस्तार के अंतर्गत वाइब्रेंट बॉर्डर विलेजों का भी विस्तार किया जाना समय की मांग है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि नाथु ला दर्रा से तवांग तक, वाइब्रेंट बॉर्डर योजना से बौखलाया विसरवादी देश, भारत सरकार द्वारा बॉर्डर एरियाओं में लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है जिसकी चुनौतियों से विस्तारवादी देश को मिर्ची का परिणाम तवांग घटना है।

संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र