
उतरौला/बलरामपुर(राष्ट्र की परम्परा)
उतरौला बाजार सहित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में मानसून की देरी ने किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। जहां जून महीने के मध्य तक अच्छी बारिश की अपेक्षा थी, वहीं आधा जून बीत जाने के बाद भी आसमान से बूंदें नहीं बरसीं। खेत सूखे हैं और धान की नर्सरी की तैयारी के लिए किसान अब वैकल्पिक साधनों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।
प्राकृतिक सिंचाई के अभाव में किसानों को अब डीजल इंजन से सिंचाई करनी पड़ रही है, जिससे खेती की लागत में जबरदस्त इजाफा हो गया है। प्रति घंटे इंजन चलाने में करीब 100 से 150 रुपये का डीजल खर्च आ रहा है, जबकि नर्सरी की सिंचाई के लिए प्रति बीघा कम से कम 6–8 घंटे इंजन चलाना पड़ता है। ऐसे में नर्सरी तैयार करने की लागत में ही हजारों रुपये खर्च हो रहे हैं।
स्थानीय किसान अल्ताफ ने बताया, “हर साल जून के पहले सप्ताह में धान की नर्सरी डाल देते थे, लेकिन इस बार सूखा पड़ा है। मजबूरी में डीजल इंजन से सिंचाई करनी पड़ रही है। खर्च बहुत बढ़ गया है, लेकिन न करें तो पूरी फसल पर संकट आ जाएगा।”
राम मूरत ने चिंता जताते हुए कहा, “न तो नहरों में पानी है, न बारिश हो रही है। बिजली का भी भरोसा नहीं। इंजन से खेत सींच रहे हैं, जिससे नर्सरी की लागत दोगुनी हो गई है। सरकार को किसानों के लिए सिंचाई डीजल पर सब्सिडी देनी चाहिए।”
सबरोज़ नामक किसान ने कहा, “हम गरीब लोग हैं। मानसून की देरी ने हमारी कमर तोड़ दी है। कर्ज लेकर इंजन चला रहे हैं। अगर बारिश और नहीं हुई तो धान की रोपाई कैसे करेंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है।”
वहीं हामिद अली ने बताया, “अब तक 3 बार इंजन से खेत सींच चुके हैं। इसके बाद भी बारिश न हुई तो नर्सरी खराब हो जाएगी। ऊपर वाले का ही सहारा है।”
क्षेत्र के कई हिस्सों में स्थित नहरों में जल आपूर्ति नहीं हो रही है। पोखर और तालाब भी लगभग सूख चुके हैं। ऐसे में केवल निजी साधनों से ही किसान सिंचाई कर पा रहे हैं, जो सभी के लिए संभव नहीं है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धान की रोपाई के लिए जुलाई के प्रथम सप्ताह तक नर्सरी तैयार हो जानी चाहिए, लेकिन बारिश न होने से न तो नर्सरी की अच्छी बढ़वार हो पा रही है और न ही खेतों की तैयारी ठीक से हो रही है। इससे फसल का समय चूक सकता है, जिससे उपज में भी गिरावट संभव है।
किसानों की मांग है कि सरकार तत्काल प्रभाव से सिंचाई डीजल पर सब्सिडी घोषित करे और बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करे, ताकि मानसून की कमी से पैदा हुई स्थिति से निपटा जा सके। वहीं कृषि विभाग को भी किसानों को तकनीकी सहयोग और राहत प्रदान करने की ज़रूरत है।
उतरौला क्षेत्र के किसान इन दिनों प्रकृति की बेरुखी से जूझ रहे हैं। एक ओर मानसून की देरी ने खेतों को सूखा कर दिया है, तो दूसरी ओर महंगी सिंचाई व्यवस्था ने उनकी लागत को दुगुना कर दिया है। अब सभी की निगाहें आसमान की ओर टिकी हैं और उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही वर्षा होकर किसानों की मेहनत रंग लाएगी।
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