उतरौला,बलरामपुर(राष्ट्र की परम्परा) चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की बात आई जैसे गीत अब गुजरे जमाने की बात होकर रह गई है। सहालग का दौर जारी है पर कहीं भी अब पुराने जमाने में चल रहे डोली,म्याना दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।समय की नजाकत को समझिए कि आज के तीस वर्ष पहले देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जब सहालग शुरू होता था तो डोली,म्याना और कहार वालों की चांदी हो जाती थी।सहालग के दौरान अच्छी खासी कमाई हो जाती थी,लेकिन आधुनिकता की दौड़ में डोली म्याना और कहार कहां चले गए कोई पता नही,क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में दशको पहले डोली और म्याना से बारात जाने पर लोगों को देखने के लिए उत्सुकता होती थी लेकिन अब यह सभी धीरे-धीरे इतिहास बनकर रह गए हैं।कहने की बात यह है कि जब डोली म्याना में सजकर दूल्हा बारात लेकर अपने ससुराल पहुंचता था तो बड़े भव्य तरीके से स्वागत किया जाता था और बैलगाड़ी में सवार होकर बाराती भी जाते थे।सहालग शुरू होने से पहले ही कहार डोली म्याना लेकर चलते देते थे वह अपनी डोली को दुल्हन की तरह सजाने का काम शुरू कर देते थे ताकि यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की कोई परेशानी डोली म्याना को लेकर न हो ।लड़की की विदाई भी पहले के जमाने में डोली में ही होती थी और चार कहार डोली म्याना लेकर लड़की के ससुराल पहुंच जाते थे।जहां पर लड़की के ससुराल वालों के द्वारा डोली म्याना का पूजन किया जाता था तथा डोली से उतारने के दौरान दुल्हन का नेग भी लिया जाता था।लेकिन आज के आधुनिक समाज ने इन सब चीजों को गायब कर दिया अब डोली म्याना की जगह नई नई चमचमाती लग्जरी गाड़ियों ने ले लिया है जिसमें अब भारी भरकम का खर्चा भी आता है और अनेकों प्रकार की सड़क दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में भी लग्जरी गाड़ियों में बैठकर जाते हैं बाराती। ऐसे में डोली और म्याना की बारात और दुल्हन की विदाई अब इतिहास बनकर रह गई है।
कहारों ने चुन लिया दूसरा व्यवसाय
डोली और म्याना से दुल्हन को लाने ले जाने का काम पहले कहार किया करते थे, लेकिन आधुनिकता की दौड़ ने जैसे जैसे लोगों को भाने लगी वैसे कहार समुदाय के लोगों ने दूसरा काम पकड़ लिया अब उन कहारों को मजबूरन अपना कारोबार बदलना पड़ा है।
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