December 24, 2024

राष्ट्र की परम्परा

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सुदामा जैसी निष्काम भक्ति कीजिए प्रभु की अनायास कृपा होगी- राघव ऋषि

देवरिया (राष्ट्र की परम्परा)

जीव यदि तन्मय होकर लक्ष्मीनारायण भगवान की साधना करता है तो उसे सभी भौतिक सुखों व साधनों की प्राप्ति होती है।यह उदगार सप्तम दिवस की कथा में निर्माणाधीन श्रीमहालक्ष्मी मंदिर परिसर, पुरवा में पूज्य राघव ऋषि ने कहा ।वेद की ऋचायें कन्या बनकर प्रभु सेवा करने आई थी । कर्मकाण्ड जिसमे अस्सी हजार मन्त्र जो ब्रह्मचारी के लिए है | उपासनाकाण्ड, इसके सोलह हजार मन्त्र जो गृहस्थ के लिए हैं। भगवान ने सोलह हजार उपासना रूपी वेद की ऋचाओं से विवाह किया। धर्म की मर्यादा में रहकर अर्थोपार्जन एवं गृहस्थ धर्म का पालन करना हैं।
गृहस्थ आश्रम धर्म का वर्णन वेद के 16 हजार मन्त्रों में किया गया सो कृष्ण की सोलह हजार रानियाँ कही गई हैं।
वेदमंत्रों को भौमासुर ने कारागृह में रखा था।भौम का अर्थ है शरीर। शारीरिक सुख में ही रमा रहे- वह है भौमासुर।विलासी जीव ही भौमासुर है। धर्म की मर्यादा में रहकर गृहस्थ जीवन व अर्थोपार्जन करना है।
भक्ति- उपासना, मन को एकाग्र करती है। भगवान श्रीकृष्ण गृहस्थ में भी अनासक्त रूप में रहे हैं।

दान न देने से गरीबी आती है

सुदामा चरित्र की व्याख्या करते हुए पूज्य राधव ऋषि ने कहा कि सुदामा अर्थात सुन्दर रस्सी में बँधा हुआ। माता-पिता,भाई,पत्नी, पुत्र आदि दस रस्सियों में जीवरूपी सुदामा बँधा हैं| सुदामा जी गरीब थे। जो भगवान को देता नहीं वह गरीब होता है।
शंकराचार्य जी ने कहा हैं- स भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला – जिसकी इच्छाएँ बहुत ज्यादा हैं। वह दरिद्र हैं। ईश्वर ने हमें तीन चीजे दी हैं- तन,मन,धन जो भगवान को नहीं देता वह दरिद्र होता हैं दरिद्र होकर वह पाप करता हैं और पाप के प्रभाव से नरक में जाता हैं फिर और पाप करता हैं और दरिद्र होता हैं | इस दरिद्रता के दुष्चक्र से बाहर आना हैं तो भगवान के निमित्त दान करो-
दान दिया संग लाया, खाया पिया अंग लगा। बाकि बचा सो जंग लगा।
इतिहास उदाहरणों से भरा हुआ हैं। सुदामा ज्ञानी थे। आजकल ज्ञान केवल अर्थोपार्जन का माध्यम रह गया हैं। ज्ञान का फल धन या प्रष्ठिता नहीं,परमात्मा से मिलना हैं सुदामा की पत्नी सुशीला महान पतिव्रता थी। गरीब पति कि निष्ठा से सेवा करने वाली पत्नी सुशीला है। पति-पत्नी साथ-साथ रहकर प्रभु सेवा करते रहें तो ऐसा गृहस्थ आश्रम सन्यास से भी श्रेष्ठ कहा गया हैं। भगवान की सेवा,पूजा माध्यम हैं परन्तु लक्ष्य परमात्मा से मिलना हैं। इसके लिए जीवन में साधना आवश्यक हैं।सुशीला के आग्रह पर साधना रूपी तंदुल (चिवड़ा} पोटली में लेकर सुदामा जी द्वारका की ओर प्रस्थान किए। दुर्बलता के कारण उन्हें मूर्छा आ गई | भगवान ने सोते हुए सुदामा को गरुड़ के माध्यम से द्वारका में पहुँचाया। जीव यदि दो कदम प्रभु के लिए आगे बढ़े तो भगवान सौ कदम आगे बढ़ते हैं। इस अवसर पर सौरभ ऋषि ने ”अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो” भजन सुनाया तो लोग मन्त्रमुग्ध हो गए। भगवान मनुष्य के वस्त्र या धन नहीं अपितु हृदय निर्मल देखते हैं।
सिंघासन पर बिठाकर भगवान ने अपने आँसुओ से सुदामा के चरणों को धोया। गरीब होना अपराध नहीं हैं परन्तु गरीबी में प्रभु को भूल जाना अपराध हैं। सुदामा पोटली को संकोचवश छुपा रहें थे।भगवान मन में हसते हैं की इसने उस दिन चने छुपाए थे और आज तंदुल।जो मुझे देता नहीं – उसे मैं भी कुछ नहीं देता। भगवान ने तंदुल का प्राशन कर समस्त विश्व को अन्नदान का पुण्य सुदामा को दिया।सुदामा ने ललाट पर विधाता ने लिखा था – श्री क्षय: अर्थात दरिद्र होगा इसे तिलक लगाते हुए भगवान ने उल्टा किया ”यक्ष श्री ” बन गया अर्थात कुबेर जैसी सम्पत्ति सुदामा की विदाई करते हुए भगवान, रुक्मिणी व रानियों के आँखों में आँसू आ गए।इस अवसर पर उपस्थित जनसमूह के आँखों में भी आँसू आ गए।

सुदामा प्रसंग की भव्य झांकी

कथास्थल पर सुदामा प्रसंग की भव्य झांकी सजाई गई | पूज्य राघव ऋषि ने कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा की परमात्मा जीव मात्र के निस्वार्थ मित्र हैं।जीव का परम् कर्तव्य हैं भगवान की सेवा व साधना करे। जीव जब ईश्वर से प्रेम करता हैं तब ईश्वर जीव को भी सरीखा बना देते हैं।
निष्काम कर्म को पाप जला देता हैं | इच्छा भक्ति में विघ्न करती हैं- इच्छा ही जीव के पुनर्जन्म का कारण हैं | जीव को माया ने पकड़ रखा हैं | जो परमात्मा की जय-जयकार करता हैं वह माया के बंधन से मुक्त हो जाता हैं।
सौरभ ऋषि ने ”सांवरियो है सेठ म्हारी राधाजी सेठाणी हैं” भजन गाया तो पूरे पण्डाल में लोग हर्षतिरेक होकर नृत्य करने लगे।
व्यासपीठ का सविधि पूजन सहायक यजमान विजय एवं अजय केजरीवाल द्वारा सपरिवार किया गया।
कथा के अंत में ऋषि सेवा समिति, देवरिया के लालबाबू श्रीवास्तव, शत्रुघ्न अग्रवाल, लक्ष्मण केजरीवाल, नन्दलाल गुप्ता, धर्मेन्द्र जायसवाल, मोतीलाल कुशवाह, अश्वनी यादव, शैलेष त्रिपाठी, कृष्ण मुरारी, अशोक श्रीवास्तव, उपेंद्र तिवारी, हृदयानंद मिश्र, ईश्वरचन्द वर्मा, राजेंद्र मद्धेशिया, कामेश्वर कश्यप, जितेंद्र गौड़, रामकृष्ण यादव सहित अनेक गणमान्य भक्तों ने प्रभु की भव्य आरती की।
कोषाध्यक्ष भरत अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार, 13 फरवरी को प्रातः 9 बजे पूर्णाहुति का कार्यक्रम है तथा अपरान्ह 1 बजे से पूज्य राधव ऋषि द्वारा कथा सार एवं विविध प्रसंगों पर प्रकाश डाला जाएगा।