Thursday, December 25, 2025
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धर्मवीर भारती : प्रेम, प्रश्न और पहचान के लेखक

धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के उन रचनाकारों में हैं, जिन्होंने लेखन को केवल सौंदर्यबोध तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे मनुष्य की पहचान, उसके अंतर्द्वंद्व और उसके सामाजिक सच से जोड़ा। उनके साहित्य में प्रेम है, लेकिन वह पलायन नहीं करता; प्रश्न हैं, लेकिन वे निराशा नहीं फैलाते; और पहचान की तलाश है, जो व्यक्ति को भीतर से जागरूक बनाती है।
25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद में जन्मे धर्मवीर भारती ने ऐसे समय में लेखन शुरू किया, जब देश स्वतंत्रता के बाद अपने नए स्वरूप को गढ़ रहा था। सामाजिक टूटन, नैतिक असमंजस और नई पीढ़ी की बेचैनी उनके साहित्य की पृष्ठभूमि बनी। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी समकालीन लगती हैं।
प्रेम को लेकर धर्मवीर भारती की दृष्टि विशिष्ट है। उनका चर्चित उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ प्रेम की कोमलता के साथ उसकी सीमाओं और सामाजिक दबावों को उजागर करता है। यह प्रेम आदर्श और यथार्थ के बीच झूलता हुआ दिखाई देता है, जो पाठक को भावनात्मक रूप से गहराई तक छूता है।
प्रश्नाकुलता उनके लेखन का केंद्रीय तत्व है। ‘अंधा युग’ के माध्यम से उन्होंने युद्ध, हिंसा और नैतिक पतन पर तीखे प्रश्न खड़े किए। महाभारत की कथा के सहारे उन्होंने आधुनिक समाज की आत्मिक अंधता को सामने रखा। यह नाटक केवल इतिहास नहीं, बल्कि वर्तमान का आईना है।
धर्मवीर भारती की रचनाओं में व्यक्ति अपनी पहचान खोजता दिखाई देता है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ जैसे उपन्यास में कथा-प्रविधि के प्रयोग के साथ-साथ स्त्री-पुरुष संबंधों और सामाजिक ढांचे की जटिलता को उकेरा गया है। यहाँ पात्र अपने भीतर और बाहर—दोनों स्तरों पर संघर्ष करते हैं।
संपादक के रूप में भी धर्मवीर भारती ने साहित्य और समाज के बीच सेतु का कार्य किया। ‘धर्मयुग’ के संपादन के दौरान उन्होंने रचनात्मकता, विचार और समकालीन विमर्श को व्यापक पाठक-वर्ग तक पहुँचाया। उनकी दृष्टि ने हिन्दी पत्रकारिता को वैचारिक गरिमा प्रदान की।
धर्मवीर भारती का साहित्य किसी निष्कर्ष को थोपता नहीं, बल्कि पाठक को सोचने के लिए प्रेरित करता है। वे मनुष्य की कमजोरी को भी समझते हैं और उसकी संभावनाओं पर भी विश्वास करते हैं। यही संतुलन उन्हें विशिष्ट बनाता है।
निष्कर्षतः धर्मवीर भारती प्रेम की कोमलता, प्रश्नों की तीक्ष्णता और पहचान की खोज को एक साथ साधने वाले लेखक हैं। उनका साहित्य आज भी युवा मन को आंदोलित करता है और समाज को आत्ममंथन के लिए विवश करता है।

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