धर्मस्थल (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) – कर्नाटक के मंदिरों के शहर धर्मस्थल में कथित हत्याओं, बलात्कारों और शवों को ठिकाने लगाने के आरोप लगाने वाली शिकायतकर्ता को विशेष जाँच दल (एसआईटी) ने गिरफ़्तार कर लिया है। यह कार्रवाई एसआईटी प्रमुख प्रणब मोहंती द्वारा की गई पूछताछ और उसके बयानों व दस्तावेज़ों में विसंगतियाँ सामने आने के बाद की गई।

कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने इस घटनाक्रम की सराहना की और कहा कि, “मुझे शुरू से ही भरोसा था। धार्मिक नेताओं ने भी जाँच का स्वागत किया है। जिसने ग़लत किया है उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। मैं किसी एक के पक्ष में नहीं हूँ; मैं न्याय और धर्म के पक्ष में हूँ। धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए।”

कैसे शुरू हुआ विवाद यह विवाद तब सामने आया जब एक मुखबिर ने दावा किया कि वह 1995 से 2014 तक धर्मस्थल में कार्यरत रहा। उसके अनुसार, उसे महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने या दाह संस्कार करने के लिए मजबूर किया गया था। शिकायत में कहा गया कि कई शवों पर यौन उत्पीड़न के निशान मौजूद थे।
शिकायतकर्ता ने 15 संभावित स्थलों की पहचान की थी, जहाँ कथित रूप से शवों को ठिकाने लगाया गया। इसके बाद एसआईटी का गठन कर खुदाई और निरीक्षण कराया गया। हालाँकि, अब तक ठोस साक्ष्य न मिलने पर एसआईटी ने शिकायतकर्ता को हिरासत में ले लिया।

राजनीतिक तूफ़ान भाजपा ने इस पूरे प्रकरण को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र ने कहा कि, “धर्मस्थल को बदनाम करने की सुनियोजित साजिश रची गई है। इससे लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुँची है।”
उन्होंने घोषणा की कि भाजपा शुक्रवार से ‘धर्म युद्ध’ नामक राज्यव्यापी आंदोलन की शुरुआत करेगी, जो अगले सप्ताह तक सभी विधानसभा क्षेत्रों में चलेगा। विजयेंद्र ने सोशल मीडिया पर फैले आरोपों और अभियानों को “श्रद्धालुओं की आस्था पर हमला” करार दिया।

आगे क्या? धर्मस्थल प्रकरण ने एक ओर जहाँ धार्मिक और सामाजिक हलकों में चिंता पैदा की है, वहीं राजनीतिक दल इसे अपने-अपने तरीके से भुनाने में जुट गए हैं। एसआईटी की जाँच अभी जारी है और सरकार ने संकेत दिया है कि “किसी भी निर्दोष के साथ अन्याय नहीं होगा, लेकिन दोषियों को बख्शा भी नहीं जाएगा।”