
(प्रस्तुति -धर्मेंद्र कुमार चौरसिया)
शाज़िया इक़बाल निर्देशित धड़क 2 अपने क्लाइमेक्स में तृप्ति डिमरी की दिल दहला देने वाली चीख़ के साथ दर्शकों को भावनात्मक झटका देती है। यह सीन, ठीक वैसे ही जैसे धड़क में जान्हवी कपूर की खामोश चीख, पर्दा गिरने के बाद भी मन में गूंजता रहता है।
फ़िल्म जाति-आधारित अत्याचारों के मुद्दे को उठाने का साहस तो करती है, लेकिन परियेरुम पेरुमल जैसी तीखी और निडर टिप्पणी पेश नहीं कर पाती। सेंसरशिप या विवाद से बचने की कोशिश में कई जगहों पर कहानी का प्रभाव कमजोर पड़ जाता है, खासकर क्लाइमेक्स में संवादों के री-डब किए जाने से।
कहानी भोपाल के भीम नगर के दलित युवक नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) से शुरू होती है, जो अपनी माँ के सपनों को पूरा करने के लिए नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ में दाखिला लेता है। बचपन के आघात और सामाजिक अपमान के बीच पला-बढ़ा नीलेश मानता है कि शिक्षा उसकी ज़िंदगी बदल देगी, लेकिन कॉलेज में भी जातिगत भेदभाव उसका पीछा नहीं छोड़ता।
वहीं, विधि (तृप्ति डिमरी) वकीलों के परिवार से होने के बावजूद अपने ही रिश्तेदारों की कट्टर सोच से जूझ रही है। नीलेश और विधि के बीच मोहब्बत पनपती है, लेकिन उनके रिश्ते के रास्ते में समाज की गहरी जड़ें जमाई पूर्वाग्रह की दीवारें खड़ी हैं। सौरभ सचदेवा खलनायक के रूप में एक निर्दयी, जातिवादी किरदार को भयावहता के साथ जीवंत करते हैं।
अभिनय के मोर्चे पर सिद्धांत चतुर्वेदी ने अपने करियर का बेहतरीन प्रदर्शन दिया है। उनकी आंखों का दर्द और अभिनय की गहराई नीलेश के संघर्ष को जीवंत कर देती है। तृप्ति डिमरी विधि के रूप में संवेदनशील और दृढ़ नजर आती हैं, जो सामाजिक बंधनों से आज़ादी चाहती है। विपिन शर्मा, अनुभा फतेहपुरा, हरीश खन्ना और ज़ाकिर हुसैन जैसे कलाकार अपनी भूमिकाओं में असर छोड़ते हैं।
राहुल बडवेलकर और शाज़िया इक़बाल की पटकथा निचली जातियों की दुर्दशा को प्रामाणिकता से दिखाती है। थॉमस जेफ़रसन के कथन “जब अन्याय क़ानून बन जाता है, तो प्रतिरोध कर्तव्य बन जाता है” से शुरू होकर फ़िल्म यह संदेश देती है कि विविधता में एकता का दावा करने वाला समाज अब भी लिंग, जाति, धर्म और आर्थिक स्थिति के आधार पर बंटा हुआ है।
धड़क 2 भले ही बॉक्स ऑफिस पर व्यावसायिक सफलता न हासिल करे, लेकिन विषय चयन और प्रस्तुति के लिए इसे और इसके कलाकारों को विशेष सम्मान मिलना चाहिए। यह सिर्फ़ प्रेम कहानी नहीं, बल्कि सामाजिक यथार्थ का आईना है, जो देखने और महसूस करने लायक है।
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