November 22, 2024

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

जीने की तमन्ना

आज फिर जीने की तमन्ना है,
और न मरने का कोई इरादा है,
यह दुनिया ही इतनी खूबसूरत है,
जहाँ स्वर्ग व नर्क की फ़ितरत है।

कहना बहुत आसान है कि जीने की,
असली उमर तो साठ साल होती है,
असल ज़िंदगी की समस्या और जंग
तो सेवा निवृत्ति के बाद शुरू होती है।

सारे ताने भी तब मिलने लगते हैं,
सठियाने की बातें करने लगते हैं,
काम के न काज के दुश्मन अनाज के,
बेदर्द बोल हो जाते हैं छोटे बड़े सबके।

निर्वस्त्र आये थे, निर्वस्त्र ही जाएँगे,
कमजोर आये थे, कमजोर ही जाएँगे,
कोई धन सम्पदा न लेकर आये थे,
न कोई धन सम्पदा लेकर जाएँगे।

पहला स्नान स्वयं नहीं कर पाये थे,
अंतिम स्नान भी स्वयं न कर पायेंगे,
आदित्य सच्चाई है जीवन की, न कुछ
लेकर आये थे, न कुछ लेकर जाएँगे।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ