July 6, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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गौ सेवा से मिलेगा आत्मिक सुख और पर्यावरण संरक्षण: रमाकांत उपाध्याय


गौमूत्र व गोबर को बताया औषधीय व पर्यावरण के लिए लाभकारी, निराश्रित गोवंश संरक्षण योजनाओं की दी जानकारी

मऊ (राष्ट्र की परम्परा)। उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग, लखनऊ के सदस्य रमाकांत उपाध्याय ने जनपद के विभिन्न गौशालाओं का निरीक्षण किया और गोसेवा को राष्ट्रसेवा का सर्वोच्च रूप बताया। निरीक्षण के उपरांत उन्होंने पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि गौ सेवा न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।

उन्होंने कहा कि गौ माता केवल दूध ही नहीं देतीं, बल्कि उनका मूत्र व गोबर भी जीवनदायिनी है। उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों का हवाला देते हुए बताया कि गौमूत्र के नियमित सेवन से हृदय रोगों में लाभ, मूत्र विकारों में सुधार, चर्म रोगों की चिकित्सा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी राहत मिल सकती है। उन्होंने कहा कि गौमूत्र शरीर की धमनियों में रक्त का प्रवाह संतुलित करता है तथा भूख बढ़ाने में सहायक है।

रमाकांत उपाध्याय ने बताया कि भारतीय गाय के गोबर में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की उच्चतम मात्रा पाई जाती है। उन्होंने कहा कि गाँवों और शहरों में वायुमंडलीय ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है, जबकि गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाकर प्राप्त भस्म में ऑक्सीजन की मात्रा 60% तक पहुँच सकती है, जो जल को शुद्ध करने व पोषक तत्वों की पूर्ति में सहायक है।

उन्होंने गौ संरक्षण को जन आंदोलन बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गायों के संरक्षण में समाज की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना की जानकारी देते हुए बताया कि इस योजना के माध्यम से बेसहारा गोवंश को आश्रय मिलता है, वहीं पशुपालकों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

उन्होंने बताया कि:

हर पात्र पशुपालक को प्रति माह 1500 रुपये की सहायता दी जाती है।

भरण-पोषण अनुदान को बढ़ाकर अब 50 रुपये प्रति गोवंश प्रतिदिन कर दिया गया है, जो पहले 30 रुपये था।

यह योजनाएं गांवों में दुग्ध उत्पादन व पोषण स्तर सुधारने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करती हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि जनपद की गौशालाओं में कर्मचारियों की कमी, चारे की उपलब्धता और पशुओं के संरक्षण की समस्याओं को प्राथमिकता पर दूर किया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए कि गौशालाओं की व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ किया जाए ताकि बेसहारा गोवंश को सुरक्षित और पोषित वातावरण मिल सके।

रमाकांत उपाध्याय ने अंत में कहा कि “गौ सेवा वास्तव में सबसे बड़ी सेवा है”, और इसका सीधा संबंध समाज के नैतिक, शारीरिक और आर्थिक स्वास्थ्य से है।र को बताया औषधीय व पर्यावरण के लिए लाभकारी, निराश्रित गोवंश संरक्षण योजनाओं की दी जानकारी

मऊ (राष्ट्र की परम्परा)। उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग, लखनऊ के सदस्य रमाकांत उपाध्याय ने जनपद के विभिन्न गौशालाओं का निरीक्षण किया और गोसेवा को राष्ट्रसेवा का सर्वोच्च रूप बताया। निरीक्षण के उपरांत उन्होंने पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि गौ सेवा न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।

उन्होंने कहा कि गौ माता केवल दूध ही नहीं देतीं, बल्कि उनका मूत्र व गोबर भी जीवनदायिनी है। उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों का हवाला देते हुए बताया कि गौमूत्र के नियमित सेवन से हृदय रोगों में लाभ, मूत्र विकारों में सुधार, चर्म रोगों की चिकित्सा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से भी राहत मिल सकती है। उन्होंने कहा कि गौमूत्र शरीर की धमनियों में रक्त का प्रवाह संतुलित करता है तथा भूख बढ़ाने में सहायक है।

रमाकांत उपाध्याय ने बताया कि भारतीय गाय के गोबर में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की उच्चतम मात्रा पाई जाती है। उन्होंने कहा कि गाँवों और शहरों में वायुमंडलीय ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है, जबकि गाय के गोबर से बने कंडे या उपले को जलाकर प्राप्त भस्म में ऑक्सीजन की मात्रा 60% तक पहुँच सकती है, जो जल को शुद्ध करने व पोषक तत्वों की पूर्ति में सहायक है।

उन्होंने गौ संरक्षण को जन आंदोलन बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गायों के संरक्षण में समाज की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना की जानकारी देते हुए बताया कि इस योजना के माध्यम से बेसहारा गोवंश को आश्रय मिलता है, वहीं पशुपालकों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

उन्होंने बताया कि:

हर पात्र पशुपालक को प्रति माह 1500 रुपये की सहायता दी जाती है।

भरण-पोषण अनुदान को बढ़ाकर अब 50 रुपये प्रति गोवंश प्रतिदिन कर दिया गया है, जो पहले 30 रुपये था।

यह योजनाएं गांवों में दुग्ध उत्पादन व पोषण स्तर सुधारने के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करती हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि जनपद की गौशालाओं में कर्मचारियों की कमी, चारे की उपलब्धता और पशुओं के संरक्षण की समस्याओं को प्राथमिकता पर दूर किया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए कि गौशालाओं की व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ किया जाए ताकि बेसहारा गोवंश को सुरक्षित और पोषित वातावरण मिल सके।

रमाकांत उपाध्याय ने अंत में कहा कि “गौ सेवा वास्तव में सबसे बड़ी सेवा है”, और इसका सीधा संबंध समाज के नैतिक, शारीरिक और आर्थिक स्वास्थ्य से है।