Sunday, December 21, 2025
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चाइल्ड लेबर—कानून मौजूद, फिर भी बच्चे मजदूर क्यों? भारत की सच्चाई उजागर करती विशेष रिपोर्ट

(राष्ट्र की परम्परा)

भारत में चाइल्ड लेबर पर सख्त कानून मौजूद हैं, फिर भी सड़कों, ढाबों, फैक्ट्रियों और घरों में आज भी हजारों मासूम बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं। सरकार की योजनाओं, सामाजिक जागरूकता अभियानों और कानूनों के बावजूद बच्चों के हाथों से किताबें छूटकर औज़ार पकड़ने की मजबूरी सवाल उठाती है कि आखिर कमी कहाँ है? यह रिपोर्ट बताती है कि कानूनी ढांचा मजबूत होने के बावजूद चाइल्ड लेबर क्यों खत्म नहीं हो पा रहा।

कानून क्या कहते हैं?

भारत में बाल श्रम को रोकने के लिए चाइल्ड लेबर (प्रोहिबिशन एंड रेग्युलेशन) एक्ट 1986, बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) 2009, और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट जैसे कानून मौजूद हैं। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह के श्रम, और 14 से 18 वर्ष तक के किशोरों से खतरनाक उद्योगों में काम लेना दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद चाइल्ड लेबर के आंकड़े हर साल बढ़ते दिखाई देते हैं।

गरीबी और मजबूरी: सबसे बड़ी वजह

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में चाइल्ड लेबर का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार बच्चों को पढ़ाने के बजाय कमाने भेजना ज्यादा सुरक्षित विकल्प समझते हैं। कई क्षेत्रों में आज भी बच्चों की मजदूरी को आम माना जाता है, क्योंकि परिवार की आय में होने वाली छोटी-छोटी मदद उन्हें जीवनयापन का सहारा देती है।

शिक्षा व्यवस्था की कमजोर पकड़

ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में आज भी शिक्षा तक पहुंच आसान नहीं है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी, खराब ढांचा और अभिभावकों में जागरूकता की कमी के कारण बच्चे पढ़ाई छोड़कर छोटे-मोटे कामों में लग जाते हैं। पढ़ाई का बोझ और परिवार की आर्थिक जरूरतें उन्हें मजदूरी की ओर खींच लेती हैं, जिससे चाइल्ड लेबर का दुष्चक्र जारी रहता है।

बढ़ती मांग: सस्ते श्रमिकों की तलाश

कई उद्योगों, ढाबों, ईंट-भट्टों, चमड़ा कारखानों और घरों में बच्चों को इसलिए काम पर रखा जाता है क्योंकि वे कम पैसे लेते हैं और आसानी से नियंत्रित किए जा सकते हैं। सस्ता श्रम मिलने की वजह से कई व्यवसायी कानूनों को नजरअंदाज कर देते हैं। इस मांग को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

निगरानी तंत्र कमजोर, कार्रवाई सीमित

कई राज्यों में श्रम विभाग और चाइल्ड वेलफेयर कमेटियों के पास जनशक्ति की कमी है। नियमित छापेमारी न होने से चाइल्ड लेबर के मामले सामने नहीं आते। जहां कार्रवाई होती भी है, वहां अक्सर छोटे दुकानदार या नियोक्ता पकड़े जाते हैं, लेकिन बड़े नेटवर्क तक पहुँचना मुश्किल साबित होता है।

समाधान क्या?

विशेषज्ञों के अनुसार चाइल्ड लेबर को खत्म करने के लिए केवल कानून काफी नहीं है।
इसके लिए—
गरीब परिवारों की आय बढ़ाने वाली योजनाओं की मजबूती
बच्चों की शिक्षा में सुधार
पंचायत स्तर पर निगरानी
उद्योगों में कड़ी जांच
और सामाजिक जागरूकता
जरूरी है। जब तक समाज खुद आगे बढ़कर “बच्चे मजदूर नहीं, विद्यार्थी हैं” की सोच नहीं अपनाएगा, तब तक चाइल्ड लेबर खत्म नहीं होगी।

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