10 नवम्बर 1990 : जब चन्द्रशेखर बने भारत के प्रधानमंत्री — संघर्ष, समर्पण और राजनीतिक परिवर्तन का प्रतीक दिन
10 नवम्बर 1990 भारतीय राजनीति के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन देश ने एक ऐसे नेता को प्रधानमंत्री के रूप में देखा, जिसने सत्ता से अधिक सिद्धांतों को महत्व दिया। चन्द्रशेखर का प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना केवल एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि लोकतंत्र के संघर्षशील स्वरूप और जनसेवा के प्रति समर्पण की मिसाल था।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और घटनाक्रम
1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय के बाद वी.पी. सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी, जिसे भाजपा और वाम दलों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने और अयोध्या आंदोलन की तेज़ी के चलते राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी। भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, और वी.पी. सिंह की सरकार गिर गई।
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इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच 10 नवम्बर 1990 को चन्द्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई और देश का नेतृत्व संभाला।
चन्द्रशेखर : सिद्धांतों के नेता
चन्द्रशेखर को भारतीय राजनीति में “युवातुर्क” के नाम से जाना जाता था। वे इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस के भीतर एक विचारधारा-आधारित राजनीति के समर्थक थे। उनका राजनीतिक जीवन आदर्शवाद, संघर्ष और जनता से गहरे जुड़ाव का प्रतीक था।
प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने “भारत यात्रा” (1983) की थी, जिसमें उन्होंने पैदल चलकर देश के गांव-गांव की समस्याओं को समझने का प्रयास किया था। यह यात्रा उनके जमीनी नेतृत्व की पहचान बनी।
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संक्षिप्त कार्यकाल, लेकिन ऐतिहासिक निर्णय
चन्द्रशेखर का प्रधानमंत्री कार्यकाल लगभग आठ महीने (नवम्बर 1990 से जून 1991) तक चला। इस अवधि में उन्होंने आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को स्थिर रखने की कोशिश की।
उनके नेतृत्व में भारत ने पहली बार गोल्ड रिजर्व (सोना) गिरवी रखकर विदेशी मुद्रा संकट से राहत पाने का कदम उठाया — जो बाद में आर्थिक सुधारों की दिशा में पहला बड़ा कदम माना गया।
वे प्रशासनिक सादगी और पारदर्शिता के समर्थक थे। प्रधानमंत्री निवास में सादे जीवन और सच्चाई के लिए वे हमेशा चर्चित रहे।
राजनीतिक विरासत और योगदान
चन्द्रशेखर का जीवन इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में विचार और ईमानदारी का स्थान सबसे ऊपर होता है। उन्होंने सत्ता के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए राजनीति की। उनका प्रधानमंत्री कार्यकाल भले ही छोटा रहा, परंतु उन्होंने भारतीय लोकतंत्र में नैतिकता की मिसाल कायम की।
