गुजरात(राष्ट्र की परम्परा)
शुक्रवार को बिहार से डकैती की खबर जहां निकल कर आ रही थी वहीं दूसरी ओर दिल दहला देने वाली घटना भी पूर्णियां शहर से निकल कर आ रही थी। जिस समस तनिष्क के शोरूम में डकैती हो रही थी वहीं कुछ दूरी पर एक घर में चिकित्कार मची हुई थी ,घर में मातम मनाया जा रहा था यह मौत उस घर के बेटे का था जो बीपीएसी शिक्षक था और जिसकी नई नई नौकरी बिहार के शिक्षा विभाग में शिक्षक के तौर पर लगी थी।
उसने सही से अपनी सफलता का स्वाद भी नहीं चखा था और इस दुनिया को अलविदा कह कर चला गया।
कल पूर्णिया में एक्सीडेंट हुआ जिसमें दो लोग बुरी तरह से घायल हुए और जिसमें एक जान चली गई और दोनों ही शिक्षक थे।
शिक्षकों की एक्सीडेंट की घटना पूरे बिहार में हर रोज कहीं ना कहीं हो रही है शिक्षक या तो अपने हाथ पैर तुड़वा रहे हैं या नहीं तो मौत को गले लगा रहे हैं ऐसा नहीं है कि, शिक्षा विभाग इन सब चीजों से अनभिज्ञ है परंतु शिक्षक सुधारो अधिनियम के तहत शिक्षा विभाग शिक्षकों के साथ सख्त है।
यह सहारनीय कदम है कि, बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की जाए सरकारी स्कूलों में आ रही पुरानी व्यवस्था को बदलकर आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के साथ अपडेट किया जाए बच्चों को नई सुविधा और नई तरीके से शिक्षा दी जाए, परंतु शिक्षा सुधार के नाम पर बिहार में सिर्फ और सिर्फ शिक्षकों को सुधारा जा रहा है। बुनियादी चीजों पर सरकार के बिल्कुल भी नजर नहीं है एक तरफ जहां सरकार कहती है कि बच्चे पढें आगे बढ़े वहीं सरकार बच्चों के मार्ग में रोडे डाल रही है ,वर्तमान में बिहार में 11वीं कक्षा की नामांकन की प्रक्रिया चल रही है जिसमें बच्चों से स्कूल के ऑप्शन मांगे जा रहे हैं और जब बच्चे आप्शन दे रहे हैं तो उनका स्कूल 20,से 50किलोमीटर के दायरे में आ रहा है जिसे सही करनें की प्रक्रिया काफी लेंदी है,2017 ,18 से उच्च माध्यमिक में online एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हुई है तब से उच्च माध्यमिक के बच्चों की पढ़ाई चौपट हो गई है,इतने दूर दूर बच्चों के स्कूल दिए जा रहें हैं कि, बच्चों के लिए हररोज स्कूल जाना संभव ही नहीं है।
जहां एक ओर बच्चों को स्कूल से दूर कर रही है वहीं दूसरी ओर शिक्षक पर सख्त है।
मैट्रिक की परीक्षा फरवरी में ली जाती है, नामांकन जुलाई अगस्त में होती है और कक्षाएं सितंबर में शुरू होती है और बच्चों के स्कूल 20 से 50 किलोमीटर दूर?
आखिर बच्चे पढ़ेंगे कैसे?
बिहार सरकार का शिक्षा को लेकर यह विरोधभास
समझ से परे हैं।
छात्र और शिक्षकों के साथ जो सरकार कर रही है यह कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता।
प्राइवेट स्कूलों के तर्ज पर बिहार के स्कूलो को बदलने की बात की जा रही है,जो सही है होनी भी चाहिए मंगल इंफ्रास्ट्रक्चर भी तो प्राइवेट स्कूलों की तरह होना चाहिए।
सिर्फ शिक्षकों को सुधारने से क्या शिक्षा व्यवस्था बदल जाएगी?
प्राइवेट स्कूल ज्यादातर शहरों में होते हैं जाने आनें की सुविधा होती हैं जबकि सरकारी स्कूल दूरदराज क्षेत्रों में होती है गांवों और कस्बों में होती है जहां तक पहुंचना ही कठिन होता है।
सरकार कहती हैं कि, शिक्षक रेंट लेकर स्कूल के पास रहे? सरकार ये क्यों भूल रही है कि, बिहार विकसित प्रदेश नहीं है, बिहार का ज्यादातर क्षेत्र पिछड़ा से अति पिछड़ा है वहां कौन घर रेंट पर लगायेगा जिसके खुद के ही घर नहीं हैं?
बिहार का शिक्षा विभाग सारी बातें अच्छी तरह जान रहा है फिर भी नित नई तुगलकी फरमान निकाल रहा है जिसकी कीमत शिक्षक अपनी जान देकर चुका रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में दस से चार का समय उपरोक्त सारी बातों को ध्यान में रखकर बनाया गया था जिसके साथ छेड़छाड़ कर शिक्षा विभाग शिक्षकों की जान ले रहा है?
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