Tuesday, October 14, 2025
Homeबिहार प्रदेशबिहार चुनाव: लोकतंत्र की असली परीक्षा शुरू

बिहार चुनाव: लोकतंत्र की असली परीक्षा शुरू

तिथियाँ तय हैं, पर दिशा तय करना है जनता को

बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। नवंबर में दो चरणों में मतदान होगा और 14 नवंबर को नतीजे सामने होंगे। यह केवल चुनावी प्रक्रिया का आरंभ नहीं, बल्कि बिहार की लोकतांत्रिक चेतना की नई परीक्षा है। राजनीति के मैदान में फिर वही चेहरे, वही वादे और वही नारों की गूंज है — मगर जनता के मन में सवाल पहले से कहीं अधिक तीखे हैं। चुनाव तिथियों के ऐलान के साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। अब सारा ध्यान प्रशासनिक निष्पक्षता और राजनीतिक शालीनता पर है। किंतु अनुभव कहता है कि कागज़ पर लागू नियम तभी सार्थक होते हैं, जब उनके पालन की नीयत सच्ची हो। चुनाव आयोग और शासन-प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि चुनाव सिर्फ “कानूनी प्रक्रिया” न बन जाए, बल्कि जन विश्वास का उत्सव भी रहे। नवीन मतदाता सूची में लाखों नामों के घटने-बढ़ने से आम मतदाता में संदेह पनपा है। यह चुनावी ईमानदारी की पहली सीढ़ी है। अगर सूची ही अपारदर्शी हो, तो जनादेश की पवित्रता पर धब्बा लगना स्वाभाविक है। आयोग को इस पर तुरंत स्पष्टता और भरोसा कायम करना चाहिए। लोकतंत्र की जड़ तभी मजबूत होगी, जब हर मतदाता यह विश्वास रखे कि उसका नाम दर्ज है और उसका वोट गिने जाने लायक है। सत्ता पक्ष अपनी उपलब्धियों का बखान करेगा, सड़कें, पुल, बिजली, स्वास्थ्य योजनाएं। विपक्ष बेरोजगारी, पलायन, अपराध और शिक्षा की दुर्दशा को मुद्दा बनाएगा। पर बिहार की जनता अब आंकड़ों से नहीं, अंतर से बदलाव चाहती है। यह चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं, राजनीतिक संस्कृति के सुधार का होना चाहिए। जनता अब वादों से नहीं, विश्वसनीयता से निर्णय करेगी। सभाओं की भीड़, नारों का शोर, सोशल मीडिया का प्रचार — ये सब फिर लौट आएंगे। मगर लोकतंत्र शोर से नहीं, संवाद से जीवित रहता है। जाति, धर्म और भावनाओं की आंधी में अगर मतदाता फिर बह गया, तो इतिहास खुद को दोहराएगा। अब वक्त है कि हर नागरिक अपने वोट को विचार का औजार बनाए, न कि भावनाओं का हथियार। बिहार के इस चुनाव में सबसे बड़ा प्रश्न यह नहीं कि कौन पार्टी जीतेगी, बल्कि यह कि जनता अपने विवेक से कितनी जीतेगी। अगर मतदाता जाति और छलावे से ऊपर उठकर मतदान करेगा, तो यही होगा बिहार के राजनीतिक पुनर्जागरण का आरंभ। अब जब तिथियाँ तय हो चुकी हैं, तो बिहार को चाहिए नई दिशा, क्योंकि असली जीत वोटों की नहीं, विश्वास की होनी चाहिए।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments