सुनिए एक मेहनतकश की कहानी,
अब तक की उसकी ही ज़ुबानी,
जब मैं छोटा था, हम केवल एक
कमरे वाले छोटे से घर में रहते थे।
मेरे माता- पिता और मैं रात में
इस कमरे में एक साथ सोते थे,
मुझे खांसी या दुःस्वप्न आते थे,
मेरे माँ पिता जल्दी उठ जाते थे।
और पूछते कि तुझे क्या हुआ बेटा,
वे मुझे दवा देकर और थपकी देकर,
फिर से सुलाने की कोशिश करते थे,
माता पिता मुझे ख़ूब दुलार करते थे।
मैने मेहनत कर ख़ूब पैसा कमाया,
मैं भी अमीरी की दुनिया में आ गया,
मैंने पैसा कमाकर ख़ूब ठाट किया,
अपनों के लिए बड़ा घर भी बनाया।
मैंने अपने कमरे के साथ अपनी माँ
के लिए भी एक बड़ा कमरा बनाया,
माँ को एक बड़ा कमरा देकर मुझे
सारी खुशियों का एहसास भी हुआ।
लेकिन तब मुझे नहीं मालूम था,
कि मैंने एक दीवार भी बनवाई है,
एक रात माँ को दिल का दौरा पड़ा,
वह चुपचाप दुनिया से चली गयी।
सुबह होने पर जब मैं अपनी माँ के
कमरे में अपनी माँ को देखने गया,
लंबी चुप्पी के बाद उसने एक आह के
साथ कहा, तब मेरी माँ मर चुकीं थी।
दीवार के उस पार मेरी माँ को बहुत
खाँसी आई होगी और शायद मुझे
आवाज भी दी होगी लेकिन मेरे और
मेरी माँ के बीच तो एक दीवार जो थी।
मेरी सबसे बड़ी गलती यही थी,
कि मैंने पैसे कमाकर व बड़ा घर
बनाकर अपनी माँ और अपने बीच
एक बेजान सी दीवार बना ली थी।
मैंने पैसे कमाए लेकिन एक ही घर में
एक अलग दीवार बनाकर मैंने अपना
रिश्ता खो दिया और सबसे बढ़कर
मैंने अपनी माँ का अस्तित्व खो दिया।
मैं अब भी यही सोचता हूं कि अगर
मेरी मां और मेरे कमरे के बीच दीवार
न खड़ी की गई होती तो शायद मेरी
माँ आज भी मेरे घर का हिस्सा होती!
आदित्य समझने वालों के लिए यह
एक इशारा है एक मौन संदेश भी है,
घर बड़ा बनवाइये, पर परिवार के
साथ माँ पिता आपकी ज़िम्मेदारी हैं।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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