गीता वाटिका में भाईजी का 132 वाँ जन्मोत्सव मना
युगद्रष्टा महामानव भाईजी हनुमान प्रसाद जी पोद्दार जीवन और अवदान विषयक संगोष्ठी आयोजित
गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘भाईजी’ की तपोभूमि गीता वाटिका में सार्वभौम संत नित्यलीलालीन भाईजी हनुमान प्रसादजी पोद्दार की 132 वीं जयंती आश्विन कृष्ण द्वादशी, तदनुसार 29 सितम्बर 2024 रविवार को आयोजित श्रद्धार्चन समारोह के अन्तर्गत ” युगद्रष्टा महामानव भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार जीवन और अवदान ” विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि श्रद्धेय भाई जी ने गोरखपुर को अपनी साहित्यिक साधना का केंद्र बिंदु बना दिया था। सन 1927 से कल्याण पत्रिका का गोरखपुर से प्रकाशन होना शुरू हुआ था। कल्याण के आदि संपादक के रूप में अपनी साहित्यिक साधना के माध्यम से उन्होंने केवल कल्याण के माध्यम से ही नहीं बल्कि सनातन धर्म से जुड़े हुए सभी वैदिक और पौराणिक साहित्य का भी गीता प्रेस के माध्यम से प्रकाशन करके उसका प्रचार-प्रसार किया। हर घर तक वैदिक साहित्य और पौराणिक साहित्य को पहुंचाने का कार्य और कल्याण हर घर तक पहुंचकर केवल आध्यात्मिक और धार्मिक ग्रंथ न बनाकर पारिवारिक जीवन का, सद्गृहस्थ जीवन का एक पवित्र ग्रंथ भी बनाया, मार्गदर्शिका भी बनाया। गत शताब्दी में सनातन हिंदू धर्म के प्रति अनुराग और श्रद्धा का भाव रखने वाला कोई भी सनातन धर्मावलंबी हिंदू ऐसा नहीं रहा होगा जिसने कल्याण पत्रिका को अपने घर में न मंगाया हो। अगर इसका श्रेय किसी को जाता है तो यह श्रद्धेय भाई जी की साहित्यिक साधना को जाता है ।
श्रद्धार्चन के पश्चात मुख्यमंत्री योगी ने भाईजी की पावन समाधि का दर्शन एवं पूजन किया। श्रद्धार्चन समारोह का शुभारम्भ श्री भाई जी की अमृतवाणी के श्रवण से हुआ इसके पश्चात् श्रीगणेश वन्दना एवं “सांवरो मंगल रूप निधान। जा दिन तें हरि गोकुल प्रगटे , दिन दिन होत कल्यान।।” पद गायन से हुआ।
विशिष्ट अतिथि अयोध्या से पधारे कथाव्यास पूज्य नरहरि दास महाराज, विशिष्ट अतिथि प्रो.डा. सच्चिदानंद जी जोशी (सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विशिष्ट अतिथि डॉ. बालमुकुंद पांडेय (राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली) विशिष्ट अतिथि डॉ. ओम जी उपाध्याय (निदेशक, शोध एवं प्रशासन, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) ने भाई जी के विशाल बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व की चर्चा करते हुए भावार्चन किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. डा.सच्चिदानंद जोशी (सदस्य, सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार) ने श्रद्धार्चन करते हुए कहा कि भाईजी का व्यक्तित्व इतना बहुआयामी था कि हर कोण से एक नई चमक निकलती है। क्रांतिकारी के रूप में शुरू हुआ उनका सार्वजनिक जीवन शिमलापाल की नजरबन्दी के बाद एक भक्त के रूप में रूपान्तरित हो गया। उन्होंने कल्याण एवं गीता प्रेस के माध्यम से सनातन ज्ञान का बोध पूरी दूनिया को कराया वह भी तब जब हम परतंत्र थे, निराशा में थे और आत्मविश्वास से हीन थे। वास्तव में पूज्य भाईजी स्वयं में एक संस्था थे जिसके ऋण से मुक्त होना समाज के लिए संभव नहीं होगा।
विशिष्ट अतिथि परम पूज्य नरहरि दासजी महाराज, कथावाचक ने गीता वाटिका की स्थापना गोरखपुर में ही किए जाने की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा कि बुद्ध, महावीर, गुरु श्रीगोरक्षनाथ एवं संत कबीर की साधना भूमि से बेहतर इस कार्य के लिए और कौन सा स्थान उपयुक्त हो सकता हैI उन्होंने साहित्य-संपादन और प्रकाशन के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान और महत्व की विस्तार से चर्चा की।
विशिष्ट अतिथि डॉ. ओम उपाध्याय (निदेशक, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ) ने भाईजी के बहुआयामी व्यक्तित्व का ध्यान करवाते हुए कहा कि उनके प्रत्येक कोण से नई चमत्कृत कर देने वाली आभा फूटती है। देश को दासता से मुक्त करने के संकल्प के साथ शुरू हुआ। क्रांतिकारी जीवन कवि, लेखक, संपादक, समाजसेवी, संगठनकर्ता गोसेवक एवं भगवतभक्त आदि उनके जीवन के ऐसे पहलू हैं जिनका एक व्यक्तित्व में होना ही उन्हें महामानव और एक विराट संस्था के रूप में स्थापित करता है।
उन्होंने कहा कि धर्मप्राण भारत के पराधिनता की पीड़ा भाईजी के बाल्यमन पर अंकित थी। इसीलिए मात्र 13-14 वर्ष की आयु में बंगाल विभाजन के समय जो स्वदेशी का व्रत उन्होंने लिया। वह जीवनभर पहले से अधिक प्रखर होता गया। खादी जिसे बाद में गांधी जी ने स्वतंत्रता संघर्ष का एक बड़ा हथियार बनाया, उसकी संकल्पना सबसे पहले भाईजी के मन में ही जन्मी थी।
उन्होंने गांधी जी से लगभग डेढ़ साल पहले खादी का प्रयोग प्रारम्भ किया। गुप्त समितियों में सक्रियता और क्रान्तिकारियों से निकटता के कारण ब्रिटिश सत्ता द्वारा मंगवायें अस्त्रों की क्रान्तिकारियों ने बंदरगाह से छुड़ा लिया जिसे क्रान्तिकारियों के बीच बाँटने का जिम्मा भाईजी और बाबूराव विष्णुराव पराडकर को मिला। इसी घटना में राजद्रोह के आरोप में उनकी गिरफ्तारी हुई। जिसके बाद उन्हें क्रमशः जेल और नजरबंदी में रखा गया। इसी बन्दी जीवन में उनके जीवन की दिशा का निर्धारण कर दिया और वे आजादी की लड़ाई के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारा के सबसे बड़े योद्धा के रूप में उभरे। हमारे सनातन ग्रन्थ अंग्रेजी सभ्यता दृष्टिके पाताल में दबे रह गये होते अगर भाईजी ने उनका प्रकाशन कर घर-घर नहीं पहुँचाया होता। वास्तव में उनका योगदान भारत के आधुनिक इतिहास में अतुलनिय है।
इसीक्रम में विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डा. बालमुकुन्द पाण्डेय ने कहा कि धर्म भारत की धूरी है। अंग्रेजी दासता के दौर में गीता प्रेस के माध्यम से भाईजी ने घर-घर में राम और कृष्ण के तत्त्वों जागृत किया। इसके माध्यम से राक्षसी ब्रिटिश सत्ता से लड़ने का साहस भरा। अब उनके जीवन का आदर्श अपने जीवन में उतारने का प्रयास करते हुए, धर्म जागरण कार्य को आगे बढ़ाने में अपनी-अपनी योग्यता के अनुरूप कार्य करते रहना ही उनके प्रति हमारी सच्ची भावांजलि होगी।
संचालन डॉ. ओमजी उपाध्याय व अतिथियों का स्वागत हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मारक समिति के संयुक्त सचिव रसेन्दु फोगला द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन स्मारक समिति के सचिव उमेश कुमार सिंहानिया ने किया।
आयोजन को सफल बनाने में हरिकृष्ण दुजारी, मनमोहन जाजोदिया, अंजलि पराशर, प्रमोद कुमार बाजपेयी, नितेश पोद्दार आदि महानुभावों की सक्रिय सहभागिता रही।
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