नई दिल्ली (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर जनसुनवाई के दौरान हुआ हमला अब केवल एक आपराधिक घटना भर नहीं रह गया है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और सुरक्षा व्यवस्था पर गहरी चोट के रूप में देखा जा रहा है। जनसुनवाई वह माध्यम है जिसके जरिए जनता सीधे सत्ता से संवाद करती है। शिकायत और समाधान के बीच की यह खाई को पाटने वाला मंच तब प्रश्नों के घेरे में आ जाता है, जब यहां असंतोष हिंसा का रूप ले ले।

मुख्यमंत्री पर हमला किसी एक व्यक्ति पर आक्रोश का परिणाम नहीं, बल्कि उस संवैधानिक पद का अपमान है जो जनता की आकांक्षाओं और लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतीक है। लोकतंत्र में आलोचना और विरोध का हर नागरिक को अधिकार है, लेकिन असहमति की भाषा हिंसा नहीं हो सकती। इस घटना ने न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि नागरिक शिष्टाचार पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

हमले के बाद राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि मुख्यमंत्री की हालत स्थिर है और उन्होंने अपने कार्यक्रम रद्द नहीं किए। उन्होंने रेखा गुप्ता को “मजबूत महिला” बताते हुए कहा कि इस तरह की घटनाएँ लोकतंत्र को कमजोर नहीं कर सकतीं।
वहीं, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” करार देते हुए कहा—”यदि दिल्ली की मुख्यमंत्री सुरक्षित नहीं हैं, तो आम आदमी या औरत की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो सकती है?”

आम आदमी पार्टी के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस हमले की कड़ी निंदा की। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा—
“दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हमला बेहद निंदनीय है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद और विरोध स्वीकार्य हैं, लेकिन हिंसा के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। मुझे विश्वास है कि दिल्ली पुलिस उचित कार्रवाई करेगी। मुझे उम्मीद है कि मुख्यमंत्री पूरी तरह सुरक्षित और स्वस्थ होंगी।”

सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल

यह हमला सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी गहरी चिंता उत्पन्न करता है। मुख्यमंत्री आवास जैसी उच्च सुरक्षा वाली जगह पर इस तरह की सेंध आम नागरिक की सुरक्षा के दावे पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है। यदि संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति भी अपने आधिकारिक निवास में सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता की सुरक्षा की स्थिति क्या होगी, यह सोचने वाली बात है।

लोकतंत्र पर खतरे की घंटी

विशेषज्ञों का मानना है कि जनसुनवाई लोकतंत्र की आत्मा है, जहां जनता की आवाज सीधे सरकार तक पहुँचती है। लेकिन जब इसी मंच पर हिंसा की घटनाएँ घटती हैं, तो यह लोकतांत्रिक संवाद की विश्वसनीयता पर संकट खड़ा करता है। यह घटना न केवल वीवीआईपी सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है, बल्कि नागरिक समाज को भी यह संदेश देती है कि असहमति का रास्ता हिंसा नहीं हो सकता।