
माकपा के विजू कृष्णन ने कहा राज्य प्रायोजित हत्याएं शर्मनाक
रायपुर/छत्तीसगढ़(राष्ट्र की परम्परा)। देश के 300 से ज्यादा नागरिक समाज संगठनों, राजनैतिक पार्टियों और बुद्धिजीवियों ने सरकार से बस्तर में युद्ध विराम और शांति वार्ता की अपील करते हुए कहा है कि सरकार को माओवादियों की पहलकदमी का सकारात्मक उत्तर देना चाहिए। यह अपील उन्होंने 27 अप्रैल को एक ऑनलाइन बैठक और पत्रकार वार्ता के जरिए की है। इन संगठनों और व्यक्तियों ने यह अपील राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और गृह मंत्री अमित शाह को भी भेजी है। ऑन लाइन पत्रकार वार्ता में बेला भाटिया ने बताया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा राज में माओवादियों के नाम पर 400 लोग मारे गए हैं, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई हैं और संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसके नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि हाल ही में मारे गए कई शीर्ष माओवादी नेताओं को मुठभेड़ में नहीं, बल्कि ठंडे दिमाग से मारा गया है, जबकि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता था। उन्होंने तत्काल युद्ध विराम और सभी अर्धसैनिक अभियानों को रोकने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। आदिवासी नेता मनीष कुंजम ने कहा कि बस्तर को एक विशाल छावनी में बदल दिया गया है। ये शिविर आम आदिवासियों के अधिकारों का हनन कर रहे हैं। इसलिए आम आदिवासियों के जीवन की रक्षा के लिए निर्णायक शांति वार्ता की जरूरत है। सुश्री सोनी सोरी ने बताया कि 40 गांवों के लोगों ने शांति की मांग करते हुए पत्र लिखा है और यही बस्तर की जनता की इच्छा है।
पत्रकार वार्ता को विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने भी संबोधित किया, जिनमें शशिकांत सेंथिल (कांग्रेस), विजू कृष्णन (माकपा), डी. राजा (भाकपा), राजा राम सिंह (भाकपा-माले-लिबरेशन) तथा डॉ. डी. रविकुमार (वीसीके) प्रमुख हैं। माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य विजू कृष्णन ने कहा कि जिस तरह से छत्तीसगढ़ में राज्य-प्रायोजित हत्याएं हो रही है, वह शर्मनाक है। सरकार को आदिवासियों से बात करनी चाहिए और उनकी समस्याओं का राजनीतिक समाधान निकालना चाहिए। संवाद के बजाय बल प्रयोग करने का यह तरीका सभी संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। अन्य पार्टियों के प्रतिनिधियों का भी स्पष्ट मानना था कि जल, जंगल, जमीन और सभी प्राकृतिक संसाधन आदिवासियों, किसानों और वहां रहने वालों के हाथों में होने चाहिए, न कि कॉरपोरेटों के हाथों में। आदिवासियों को संविधान के विशेष संरक्षण दिया गया है और संघर्ष की स्थिति संविधान के तहत उनके सभी अधिकारों का उल्लंघन करती है। सभी पार्टियों ने एक स्वर से आदिवासी समुदायों के खिलाफ राज्य बलों के इस्तेमाल की निंदा की।
प्रोफेसर हरगोपाल, जिनके पास आंध्र प्रदेश में शांति वार्ता का एक लंबा अनुभव है, ने कहा कि माओवादी आंदोलन की जड़ें भारतीय समाज में व्याप्त गहरी सामाजिक-राजनीतिक असमानताओं में हैं और शांति वार्ता के लिए बिना शर्त आत्मसमर्पण या निरस्त्रीकरण को एक शर्त बनाना अनुचित है। डॉ. मीना कंदासामी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर राज्य द्वारा “शहरी नक्सल” का लेबल लगाने की आलोचना की। एमएक्स. बादल ने कहा कि बस्तर और झारखंड में चल रहा युद्ध कॉर्पोरेट हितों से प्रेरित है। कॉर्पोरेट्स के साथ कई हजार करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं और माओवादी आंदोलन को कुचलने के बहाने से, खनन उद्देश्यों के लिए शिविर और राजमार्ग बनाए जा रहे हैं। उन्होंने शांति वार्ता के लिए युद्धविराम के जरिए अनुकूल माहौल बनाने और राजनैतिक सवालों का राजनैतिक समाधान निकालने पर जोर दिया।
ऑन लाइन बैठक और प्रेस वार्ता के बाद जारी अपील में कहा गया है कि राज्य द्वारा माओवादियों के खिलाफ जो ऑपरेशन कगार चलाया जा रहा है, वह निर्दोष आदिवासियों के मानवाधिकारों का दमन कर रहा है और इस अभियान में बड़ी संख्या में बच्चे भी मारे जा रहे हैं। इसलिए राज्य और माओवादियों दोनों से अपील की गई है कि आदिवासियों और ग्रामीणों के सर्वोत्तम हितों के मद्देनजर अपनी अपनी हिंसक मुहिम पर रोक लगाएं और युद्ध विराम के जरिए शांति वार्ता का मार्ग प्रशस्त करें। अपील में सरकार से कहा गया है कि सरकारी रिपोर्टों के अनुसार ही, अब सशस्त्र माओवादी कैडर और माओवाद प्रभावित जिलों की संख्या बहुत कम रह गई है, बस्तर के लगातार सशस्त्रीकरण का कोई औचित्य नहीं है। इस अपील में सरकार से मांग की गई है कि प्रभावित क्षेत्रों तक स्वतंत्र नागरिक संगठनों और मीडिया को निर्बाध पहुंच दी जानी चाहिए, लोगों की आजीविका की आवश्यकताओं और संवैधानिक अधिकारों को तुरंत संबोधित किया जाना चाहिए और राज्य को उन सभी आदिवासियों और कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए, जिन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर आवाज उठाने और आदिवासियों के विरोधी राज्य नीतियों से असहमति जताने के कारण जेल में डाला गया है, ताकि वे वार्ता प्रक्रिया में बराबर के भागीदार के रूप में भाग ले सकें। अपनी अपील में उन्होंने कहा है कि सशस्त्र संघर्ष और राज्य दमन की स्थिति में लोगों से जुड़े असली मुद्दे – जैसे कि खाद्य सुरक्षा, भूमि और वन अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक अधिकार और उनका बहुआयामी शोषण – गौण हो जाते हैं। जिन ज़मीनों पर खनन प्रस्तावित है, वहां के लोगों की सहमति आवश्यक है। इन सभी मुद्दों का समाधान तुरंत किया जाना चाहिए, जो केवल शांति और न्याय की स्थिति में ही संभव है।
अपील में हस्ताक्षर करने वाले संगठनों में आदिवासी अधिकार बचाओ मंच (बस्तर), अखिल भारतीय नारीवादी गठबंधन, इंकलाबी यूथ एंड स्टूडेंट्स अलायंस, किसान मजदूर सभा (ओडिशा), क्रांतिकारी किसान सभा, ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल, जिंदल विरोधी और पोस्को विरोधी आंदोलन, नागरिक अधिकार संरक्षण संघ, लोकतांत्रिक अधिकार संरक्षण संघ, भगत सिंह छात्र एकता मंच, मनगढ़ंत मामलों के खिलाफ अभियान, छत्तीसगढ़ में शांति और न्याय के लिए अभियान, शांति के लिए नागरिक पहल, सिविल लिबर्टीज कमेटी (आंध्र प्रदेश), राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समिति, कामकाजी महिलाओं की समन्वय समिति (राजस्थान), लोकतांत्रिक अधिकार संगठनों का समन्वय, ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ डेमोक्रेटिक फ्रंट (पंजाब), डॉ. रिछारिया फाउंडेशन, फातिमा शेख स्टडी सर्कल (असम), समाख्या (बिहार), निगमीकरण और सैन्यीकरण के खिलाफ फोरम, महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ मंच, फोरम अगेंस्ट रिप्रेशन (तेलंगाना), गणतंत्र अधिकार सुरक्षा संगठन (ओडिशा), मानवाधिकार मंच, भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन, इंसाफ, इंसानी बिरादरी, जलधारा अभियान, जन हस्तक्षेप, जन चिंतन केंद्र, जनता विकास, झारखंड जनाधिकार महासभा, न्याय समाचार, कर्नाटक जनशक्ति, कर्नाटक श्रमिक शक्ति, खुदाई खिदमतगार, मनोमित्रम, मिशन जस्टिस, नागरिक अधिकार समिति (झारखण्ड), नारी शक्ति क्लब, नर्मदा बचाओ आंदोलन,न्याय, जवाबदेही और अधिकार के लिए राष्ट्रीय गठबंधन, पीपुल्स मूवमेंट का राष्ट्रीय गठबंधन, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, नई ट्रेड यूनियन पहल (ओडिशा), मनरेगा श्रमिक यूनियन,
पहल संस्थान, शांति संवाद समिति, पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, पीपल्स वॉच, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फोरम, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, पोराट्टम (केरल), क्वीर कलेक्टिव इंडिया,
क्वीर पोएट्स कलेक्टिव, राजसमंद महिला मंच, रिवोल्यूशनरी यूथ एसोसिएशन, साझी दुनिया, सहज कदम, समता, द्वारका वन बचाओ जन आंदोलन, तेलंगाना डेमोक्रेटिक फोरम, ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया, राजनीति के लिए युवा लोग, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ खदान श्रमिक संघ, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति), रेला, ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, प्रदेश किसान संघ, सेवादार संघ, रावघाट संघर्ष समिति, नव लोक जनवादी मंच, छत्तीसगढ़ किसान सभा (एआईकेएस से संबद्ध), आदिवासी भारत महासभा, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच,
जाति उन्मूलन आंदोलन, जनसंघर्ष मोर्चा, जन मुक्ति मोर्चा, लोक सिरजनहार संघ, प्रगतिशील किसान संगठन, प्रगतिशील सीमेंट श्रमिक संघ, गांव बचाओ समिति (मुंगेली), नगर निकाय जनवादी सफाई कामगार यूनियन, दलित आदिवासी मंच (पिथौरा), क्रांतिकारी किसान सभा, क्रांतिकारी महिला संगठन, जशपुर विकास समिति, ईसाई अधिकार संगठन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति आदि संगठन तथा अजय टी जी, अमिताभ बसु, अनुराधा तलवार, अपूर्बा रॉय, आशालता, अविजित दत्त, बी मुरलीधर, बेला भाटिया, बिराज मेहता, डॉ सुनीलम, हर्ष मंदर, हिमांशु कुमार, इंद्रनील रॉयचौधरी, ईशा खंडेलवाल, के ए शाजी, कृष्णा प्रसाद, रंजना पाढ़ी, रुनु चक्रवर्ती, सच्चिदानंद सिन्हा, सेबस्टियन जोसेफ, शालिनी गेरा, उल्का महाजन, जी. हरगोपाल, शशिकांत सेंथिल (सांसद, कांग्रेस), राजा राम सिंह (सांसद, सीपीआई-एमएल-लिबरेशन), डी रविकुमार (सांसद, विदुथलाई), चिरुथिगल काची( वीसीके), डी. राजा (महासचिव, सीपीआई), विजू कृष्णन (पोलित ब्यूरो सदस्य, माकपा), सोनी सोरी, आलोक शुक्ला, संजय पराते, मनीष कुंजाम (पूर्व विधायक), मैत्रेयी कृष्णन, ईशा खंडेलवाल, शरण्या नायक, नंदिनी सुंदर, आदियोग, मेधा पाटकर, अधिवक्ता गायत्री सिंह, मीरा संघमित्रा, मिलिंद रानाडे, पूर्व न्यायाधीश चंद्र कुमार, कविता श्रीवास्तव, जनक लाल ठाकुर (पूर्व विधायक), सौरा यादव, तुहिन देव आदि व्यक्तियों के हस्ताक्षर शामिल हैं।
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