- स्वयं प्रकाश (2019) — विचारों की आग से समाज को जगाने वाला साहित्यकार
स्वयं प्रकाश का जन्म उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर जनपद में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के उन सशक्त हस्ताक्षरों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों, जातिगत भेदभाव और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनके उपन्यास और कहानियाँ यथार्थ के करीब थीं, जिनमें आम जीवन की पीड़ा और संघर्ष साफ झलकता है। प्रमुख कृतियों में नीलकंठ हुआ मरंग, भारतीय समाज की समस्याएँ जैसे विचारोत्तेजक लेखन शामिल हैं। उन्होंने दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में रहते हुए साहित्यिक आंदोलनों को दिशा दी। उनका योगदान केवल साहित्य तक सीमित नहीं रहा — वे सामाजिक चेतना के सशक्त वाहक बने। उत्तर प्रदेश से शुरू हुई उनकी वैचारिक यात्रा ने पूरे भारत के साहित्यप्रेमियों को प्रभावित किया। 7 दिसंबर 2019 को उनका निधन हुआ, किंतु उनके लिखे शब्द आज भी जलते दीपक की तरह समाज को राह दिखाते हैं।
- चो रामस्वामी (2016) — व्यंग्य की धार, जनमत की पहचान
चो रामस्वामी का जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी (अब चेन्नई, तमिलनाडु) में हुआ था। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे — अभिनेता, हास्य कलाकार, नाटककार, फ़िल्म निर्देशक, राजनीतिक व्यंग्यकार और अधिवक्ता। दक्षिण भारत में उनके व्यंग्य लेख और पत्रिका तुगलक अत्यंत लोकप्रिय रही। उनके राजनीतिक विश्लेषण में तीखापन और सटीकता थी, जो सत्ता से लेकर समाज तक हर स्तर पर सवाल खड़ा करती थी।
चो रामस्वामी ने तमिल रंगमंच को नया आयाम दिया और फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। उनके नाट्य कार्यों ने सामाजिक विसंगतियों पर तीखे कटाक्ष किए। तमिलनाडु की राजनीतिक चेतना को जाग्रत करने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। 7 दिसंबर 2016 को चेन्नई में उनका देहांत हुआ, लेकिन उनका व्यंग्य आज भी जनमानस में जीवित है।
- बेगम आबिदा अहमद (2003) — समाजसेवा और सादगी की प्रेरणा
बेगम आबिदा अहमद का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद में हुआ था। वे भारत के पाँचवें राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद की पत्नी थीं, लेकिन उनकी पहचान केवल “राष्ट्रपति की पत्नी” तक सीमित नहीं रही। वे एक सशक्त समाजसेविका, महिला अधिकारों की समर्थक और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहीं।
महिलाओं और अल्पसंख्यकों के हित में उन्होंने अनेक संगठनात्मक कार्य किए। वे राज्यसभा की सदस्य भी रही थीं और अपने सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती थीं। शिक्षा, बाल कल्याण और महिला उत्थान के लिए उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। 7 दिसंबर 2003 को उनके निधन के साथ एक शांत, परंतु दृढ़ आवाज़ हमेशा के लिए मौन हो गई — परन्तु उनके कार्य आज भी प्रेरणा देते हैं।
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- दीप नारायण सिंह (1977) — बिहार की राजनीति का मजबूत स्तंभ
दीप नारायण सिंह का जन्म बिहार के रोहतास जनपद में हुआ था। वे बिहार के दूसरे मुख्यमंत्री बने और राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। उनके शासन काल में विकास, कानून-व्यवस्था और सामाजिक समरसता पर विशेष बल दिया गया। वे दृढ़ निर्णयों और स्पष्ट दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे।
उनकी राजनीतिक सोच जन-कल्याण पर केंद्रित थी। उन्होंने बिहार को पिछड़ेपन की छवि से बाहर लाने का प्रयास किया और बुनियादी ढांचे के विकास पर ज़ोर दिया। 1977 में 7 दिसंबर को उनका निधन हुआ, और बिहार की राजनीति ने एक दूरदर्शी नेता खो दिया।
- हैदर अली (1782) — मैसूर का शेर, साम्राज्यवाद का प्रखर विरोधी
हैदर अली का जन्म वर्तमान कर्नाटक के कोलार क्षेत्र में माना जाता है। वे किसी शाही वंश में पैदा नहीं हुए, बल्कि अपनी रणनीतिक कुशलता, शौर्य और नेतृत्व क्षमता के बल पर मैसूर के शासक बने। उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कई निर्णायक युद्ध लड़े और दक्षिण भारत में अंग्रेज़ों के विस्तार को लंबे समय तक रोके रखा।
उनके शासनकाल में सेना का आधुनिकीकरण हुआ और आर्थिक ढाँचा मजबूत हुआ। वे आधुनिक युद्ध तकनीकों को अपनाने वाले पहले भारतीय शासकों में गिने जाते हैं। उनके पुत्र टीपू सुल्तान ने भी उनके मार्ग पर चलते हुए संघर्ष जारी रखा। 7 दिसंबर 1782 को उनका निधन हुआ, लेकिन भारतीय इतिहास में वे आज भी साहस और स्वाभिमान के प्रतीक बने हुए हैं।
7 दिसंबर: इतिहास का वह दिन जो मौन होकर भी बोलता है
7 दिसंबर केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उन व्यक्तित्वों की स्मृति है जिन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य क्षेत्रों में अमिट छाप छोड़ी। इन महान आत्माओं के विचार, संघर्ष और योगदान आज भी हमारी चेतना में जीवित हैं।
