जनक बचन सुन सब नर नारी ,देखि जानकी भई दुखारी

महुआ बाजार ,बलरामपुर(राष्ट्र की परम्परा) श्री राम विवाह समिति पिपराराम में राकेश प्रधान श्री राम लीला समिति हसिनपारा के तत्वाधान मे मंगलवार से आयोजित लीला मंचन प्रारंभ हुआ। भव्य, दिव्य लीला मंचन होने से पूरे क्षेत्र में आस्था का सैलाब आ गया है। हर गांव से महिलाएं, वृद्ध, बच्चे उपस्थित होकर लीला का दर्शन करने पहुंच रहे हैं। अंतिम दिवस अर्थात शुक्रवार को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, भ्राता, लक्ष्मण, अपने गुरु विश्वामित्र के पावन सानिध्य में यज्ञ रक्षार्थ के लिए चल पड़े। गुरु विश्वामित्र के आदेश का पालन करते हुए दोनों भाई पुष्प चुनने हेतू पंचवटी में पहुंचते है जहां जगत जननी पावन पुनीता माता सीता अपने सखियों सहित उपस्थित होती हैं, एक दूसरे को देखने पर मन ही मन में पसंद करते हैं। इसी बीच मनमोहक गीतों से समा बांधते हुए गोलू द्वारा प्रस्तुत भजन
राम को देख कर के जनक नंदनी।
दोनों अंखियां लड़ी की लड़ी रह गई।।
सुन कर दर्शक मंत्र मुग्ध हो गए।
राजा जनक ने संकल्प लिया कि जो इस धनुष को तोड़ेगा उसी के साथ सीता स्वयंवर होगा। दूर दूर से तमाम राजा, महाराजा रंगभूमि पर उपस्थित हुए किंतु किसी से हिला तक नहीं। काफी समय व्यतीत होने पर राजा जनक आश्चर्य चकित हो गए और सभा में आए सभी राजाओं से भय और क्रोध के मिश्रित शब्द बाण चलाना प्रारम्भ किया।
हे दूर दूर के राजा गण, हम किसे कहे बलिशाली है।
हमें प्रतीत यह होता है पृथ्वी वीरों से खाली है।।
जनक वचन सुनी सब नर नारी।
देखि जानकीहि भए दुखारी।।
इतना सुनते ही शेषावतार लखन लाल क्रोध से तमतमा उठे, खड़े होकर राजा जनक से कहा।
माखे लखनु कुटिल भई भौंहे।।
लखन लाल क्रोध से लाल हो गए और बड़े भाई श्री राम से बोले ,
लखन संकोप वचन जे बोले।
डगमगानी महि दिग्गज डोले।।
सकल लोग सब भूप डेराने।
सीए हिए हरसु जनक सकुचाने।।
विश्वामित्र उचित शुभ समय जानकार कर अत्यंत प्रेम भरी वाणी बोले, हे राम उठो शिव जी का धनुष तोड़ो और जनक का संताप हरो।
चारों दिशाओं, पृथ्वी, पूर्वजों और गुरु को प्रणाम करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम राम धनुष के तरफ़ धीरे धीरे बढ़ते हैं उपस्थित सभी नर नारी के मन में भय सता रहा है कि सुकोमल बालक कैसे राजा जनक का संताप हरेंगे?
बांदी पितर सुर सुकृति संभारे।
जो कछु पुन्य प्रभाव हमारे।।
तो शिव धनु मृणाल की नाई
तोड़हू राम गणेश गुसाई।।
सबको प्रणाम करने के बाद धनुष को पलक झपकते ही तोड़ दिया। उपस्थित जन सैलाब फूलों की वर्षा करने लगी, इसके बाद परशुराम जी और लक्ष्मण के बीच संवाद को दिखाया गया, दर्शक ऐसे मंचन को निहार रहे थे मानो आज पिपरा राम अयोध्या धाम बन गया हो, गोला, पटाखे फूट रहे थे पूरे क्षेत्र वासियों में हर्षौल्लास व्याप्त है। अध्यक्ष राम यश, राजाराम जायसवाल, अनिल कुमार, राम मूरत, साधु शरण, सुरेश निषाद, कौशल कुमार ने समापन पर खूब मिठाइयां बांटी और गुलाल लगाकर एक दूसरे से गले मिले।

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