सदा रखते हैं जो पवित्र विचार,
अच्छी सोच उनकी हो लगातार,
बुरे भाव दूर रखने का समाधान,
सदा अमल में लायें सुसंस्कार।
संस्कारों की परीक्षा होती बार बार,
तभी ख़ुशियाँ मिलती हैं अपरम्पार,
फ़ैसले लेता वो ऊपर नज़र रखकर,
उसी के फ़ैसले होते हैं सबसे बेहतर।
किसी को भी खुद तकलीफ़ देकर,
अपनी ख़ुशी की दुआ मत करना,
किसी को एक पल की भी ख़ुशी दो
अपनी तकलीफ़ की फ़िक्र न करना।
जिसके पैरों में पहनने की जूते नहीं,
वह अपनी दरिद्रता के लिये रोता है,
पर किसी के पैर ही नहीं हैं देखकर,
प्रभू-महिमा जान रोना छोड़ देता है।
ऐसे ही गुज़र जाता है सारा जीवन,
गुज़र जाते हैं अच्छे बुरे सारे प्रहर,
जीवन बीतता है मुसाफ़िरों के जैसा,
यादें ठहर जाती हैं, चौराहों की तरह।
इंसान का जीवन तो लम्बा होता है,
पर इंसान जीना देर से शुरू करते हैं,
जब तक मंज़िल समझ में आती है,
तब तक इंसान की उम्र बीत जाती है।
आदित्य उम्र का होता है कैसा संयोग,
इंसान की उम्र, एक उम्र बीतने के बाद,
उसको सारी उम्र याद आती रहती है,
पर वह उम्र, उम्रभर फिर नहीं आती है।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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