Tuesday, October 14, 2025
Homeकवितामित्र को मित्र से प्रमाण नहीं चाहिये

मित्र को मित्र से प्रमाण नहीं चाहिये

इससे अच्छा क्या होगा कि कोई
छोटी छोटी बात पर करे प्रशंसा,
स्वीकार करे आपको मुसीबत में,
ज़रूरत के समय करे जो सहायता।

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ख़ुश रहे ख़ुशी देखकर और की,
जीवन में करे उसका समावेश भी,
औरों का दुःख भी माने दुःख अपना,
सबकी भलाई का देखे वह सपना।

समझ तो रहे थे मगर फिर भी
न रख सके हम कोई भी दूरियां,
हमने तो चिराग़ों को जलाने में,
जला डाली हैं खुद की उँगलियाँ।

हालात और हौसलों का आपस में
द्वन्द्व छिड़े तो मज़बूत बने हौसला,
हौसला बुलन्द इतना हम सब रखें,
हालात बदल कर सकें सबका भला।

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हौसला बढ़ाये जो वही मित्र सच्चा,
बीती बातें समझे मित्र वही अच्छा,
जो आज जैसा, वैसा स्वीकार करे,
आगे भी मित्र को मित्र लगे अच्छा।

विचारों का आदान-प्रदान कर,
परस्पर हो क्रिया व प्रतिक्रिया,
प्राप्त हो अनुभव, सही सीख पायें,
जब सच्चे मित्र ने, सदा साथ दिया।

मित्र को मित्र से प्रमाण नही चाहिए,
उसकी रुचि उसके सुधार में चाहिए,
आदतें हों अच्छी, व्यवहार हो अच्छा,
सभी बने अच्छे, सम्मान हो अच्छा।

मित्र जैसे सुदामा गरीब के स्वयं,
द्वारिकाधीष भगवान श्रीकृष्ण थे,
वानर सुग्रीव, असुर विभीषण के,
परम मित्र भगवान जैसे श्रीराम थे।

पापों से बचाये, हित साधन कराये,
सद्गुणों से मित्र को गुणागार बनाये,
‘आदित्य’ वही मित्र परम सुमित्र है,
सदा साथ देकर, जो मित्रता बचाये।

डॉ कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’

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