लखनऊ (राष्ट्र की परम्परा डेस्क) उत्तर प्रदेश की राजनीतिक व सामाजिक हलचलों में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है: भाजपा नेता और यूपी महिला आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव के भाई चंद्रशेखर सिंह बिष्ट (उर्फ अमन बिष्ट) के खिलाफ गोमतीनगर थाना क्षेत्र में ₹14 करोड़ की जमीन धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज हुआ है। यह मामला कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ है, जिसमें उनके साथ हिमांशु राय नामक सहयोगी भी शामिल है।
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क्या है आरोप?
शिकायतकर्ता ठाकुर सिंह मनराल, जो एक रियल एस्टेट कंपनी “मार्चेंटास इन्फ्राटेक्स प्रा. लि.” के निदेशक हैं, ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2019 में उन्होंने अमन बिष्ट से लगभग 22.10 बीघा जमीन खरीदने का समझौता किया था, दर तय थी ₹1,100 प्रति वर्गफुट।
इस सौदे के अंतर्गत लगभग ₹14 करोड़ रुपये नगद और चेक के माध्यम से अदा किए गए।
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लेकिन आरोप है कि इस पूरी जमीन की बजाय सिर्फ 13,450 वर्गफुट की ही जमीन की रजिस्ट्री कराई गई, जबकि तय की गयी जमीन इससे कहीं ज़्यादा थी (लगभग 26,900 वर्गफुट)।
जब शिकायतकर्ता ने बाँकी जमीन और पैसे की बात की, तब आरोपी (अमन बिष्ट और हिमांशु राय) ने उन्हें धमकियाँ दीं। कहा गया कि “पैसा भूल जाओ, अगर दोबारा माँगा तो जान से हाथ धो बैठोगे”।
कानूनी प्रगति
इस प्रकरण की शिकायत थाना गोमतीनगर में की गई है।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की ओर से कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई है।
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इस एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 316(5), 318(4), 338, 336(3) और 351(3) के तहत अपराध दर्ज किया गया है।
मामलों का पिछला इतिहास
यह पहला मामला नहीं है इस परिवार से जुड़ा जमीन विवाद का:
इससे पहले अपर्णा यादव की मां, अम्बी बिष्ट, के खिलाफ जानकीपुरम जमीन घोटाले के मामले में भी एफआईआर दर्ज की गई थी।
मां के साथ एलडीए (LDA) के तब के अधिकारियों सहित अन्य व्यक्तियों के खिलाफ आरोप हैं कि उन्होंने भूमि आवंटन एवं रजिस्ट्रीकरण में गड़बड़ी की थी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
अपर्णा यादव, जो कि मुलायम सिंह यादव के परिवार से संबंध रखती हैं, भाजपा में हैं और वर्तमान में यूपी महिला आयोग की उपाध्यक्ष हैं। इससे राजनीतिक दृष्टि से यह मामला संवेदनशील बन गया है।
विपक्षी दलों द्वारा इस मुद्दे को राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करने की उम्मीद है, विशेषकर सपा या अन्य दल आरोपों की जांच की पारदर्शिता और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर सकते हैं।
पुलिस मामले की गहन जांच कर रही है — दस्तावेजी साक्ष्य, रजिस्ट्री की असलियत, पैसों के लेन-देन की जांच, और धमकियों की पुष्टि।
न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी या अन्य अवश्यक कानूनी कार्रवाइयाँ हो सकती हैं यदि आरोप सिद्ध होते हैं।
यह मामला दिखाता है कि जमीन सौदों में कानूनी सुरक्षा और पारदर्शिता कितनी महत्वपूर्ण है, खासकर जब बड़े रूपये involved हों और राजनीतिक परिवार की शख्सियत से जुड़े हों। पीड़ित पक्ष को यह साबित करना होगा कि सौदा पूरी तरह से, वादे के अनुरूप नहीं हुआ, और आरोपियों द्वारा किया गया लेन-देन व रजिस्ट्रीकरण असत्य और धोखाधड़ीपूर्ण था।