
दर्शन करने आते हैं हजारों श्रद्धालु, मेले की तैयारियां जोरों पर
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)। गोरखनाथ मन्दिर के नाम से चौक बाजार छावनी के रुप मे प्रसिद्ध मंदिर है जो उप पीठ के रुप में जाना जाता है। यहां महंथ दिग्विजय नाथ, महंथ अवैद्यनाथ ,और आदित्य नाथ हमेशा गोरखपुर से चलकर छावनी पर आते जाते थे जिसको लेकर जनवरी माह में मकर संक्रान्ति पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।
गोरक्षनाथ के जन्म काल के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्म काल 845 ई.की 13वीं सदी का मानते हैं। गुरु गोरखनाथ के जन्म के विषय में प्रचलित है कि एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु मत्स्येन्द्र नाथ किसी गांव में गए। किसी एक घर में भिक्षा के लिए आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद स्वरूप पुत्र की याचना की। गुरु मत्स्येंद्र नाथ सिद्ध तो थे ही। अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उन्होंने एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि इसका सेवन करने के बाद यथासमय वे माता बनेंगी। उनके एक महा तेजस्वी पुत्र होगा जिसकी ख्याति चारों और फैलेगी।
आशीर्वाद देकर गुरु मत्स्येन्द्र नाथ अपने भ्रमण क्रम में आगे बढ़ गए। बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्र नाथ उसी गांव में पुनः आए। कुछ भी नहीं बदला था। गांव वैसा ही था। गुरु के भिक्षाटन का क्रम अब भी जारी था। जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था, उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया। उन्होंने घर में आवाज लगाई। वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिए आई। गुरु ने बालक के विषय में पूछा गृह स्वामिनी कुछ देर तो चुप रही, परंतु सच बताने के अलावा उपाय न था। उसने तनिक लज्जा, थोड़े संकोच के साथ सब कुछ सच सच बतला दिया। उसने कहा कि आपसे भभूत लेने के बाद पास-पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिए उसकी खूब खिल्ली उड़ाई। उनकी बातों में आकर मैंने वह भभूत पास के गोबर से भरे गड्डे में फेंक दिया था।गुरु मत्स्येन्द्र नाथ तो सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यान बल से देखा और वे तुरंत ही गोबर के गड्डे के पास गए और उन्होंने बालक को पुकारा। उनके बुलाने
पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्र नाथ बच्चे को लेकर चले गए। यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्र नाथ (मछंदरनाथ) थे।
गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहां पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लांघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
नौ नाथों की परंपरा से 84 नाथ हुए। नौ नाथों के संबंध में विद्वानों में मतभेद हैं। सभी नाथ साधुओं का मुख्य स्थान हिमालय की गुफाओं में है। नागा बाबा, नाथ बाबा और सभी कमंडल, चिमटा धारण किए हुए जटाधारी बाबा शैव और शाक्त संप्रदाय के अनुयायी हैं, लेकिन गुरु दत्तात्रेय के काल में वैष्णव, शैव और शाक्त संप्रदाय का समन्वय किया गया था। सिद्धों की भोग-प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथ पंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्र नाथ तथा गोरखनाथ माने जाते हैं। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथ मत एक ही हैं।
मान्यता है कि त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर गए। सिद्ध योगी को देख देवी साक्षात प्रकट हो गई और उन्हें भोजन का आमंत्रण दिया। जब गुरु पहुंचे तो वहां मौजूद तरह-तरह के व्यंजन देख ग्रहण करने से इनकार कर दिया और भिक्षा में मिले चावल-दाल ही ग्रहण करने की बात कही। देवी ने गुरु की इच्छा का सम्मान किया और कहा कि आप के द्वारा लाए गए चावल-दाल से ही भोजन कराऊंगी। उधर उन्होंने पकाने के लिए पात्र में पानी रखकर उसे आग पर चढ़ा दिया।
इधर, गुरु भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए। यहां उन्होंने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक स्थान का चयन कर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने एक योगी का भिक्षा पात्र देखा तो उसमें चावल-दाल डालने लगे। जब काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे योगी का चमत्कार माना और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। तभी से गुरु के इस तपोस्थली पर खिचड़ी पर्व पर चावल-दाल चढ़ाने की जो परंपरा शुरू हुई, वह आज तक उसी आस्था व श्रद्धा के साथ चल रही है।
उधर, ज्वाला देवी मंदिर में आज भी बाबा गोरखनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है। खिचड़ी चढ़ाने की शुरुआत भोर में गोरक्षपीठाधीश्वर द्वारा होती है, उसके बाद यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहता है। मान्यता है कि खिचड़ी चढ़ाने वाले भक्तों की हर मनोकामना शिवावतारी गुरु गोरखनाथ पूरी करते हैं। नेपाल के राज परिवार से आते हैं।खिचड़ी बाबा गोरखनाथ के दरबार में मकर संक्रांति पर नेपाल राज परिवार की ओर से भी खिचड़ी चढ़ाई जाती है। इसके पीछे का इतिहास नेपाल के एकीकरण से जुड़ा है। नेपाल के राजा के राजमहल के पास ही गुरु गोरक्षनाथ की गुफा थी।उस समय के राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह से कहा कि यदि कभी गुफा में गए तो वहां के योगी जो भी मांगे, उसे मना मत करना। जिज्ञासा वश शाह खेलते हुए वहा पहुंच गए और गुरु ने उनसे दही मांग दी। राजकुमार अपने माता-पिता संग दही लेकर जब गुरु के पास पहुंचे तो उन्होंने दही का आचमन कर युवराज के अंजुलि में उल्टी कर दी और उसे पीने को कहा। युवराज की अंजुलि से दही उनके पैरों पर गिर गई। लेकिन बालक को निर्दोष मानकर नेपाल के एकीकरण का वरदान गुरु ने दे दिया। बाद में इसी राजकुमार ने नेपाल का एकीकरण किया। तभी से नेपाल नरेश व वहा के लोगों के लिए बाबा गोरखनाथ आराध्य देव हैं।
राजपरिवार से खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा भी तभी से शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है। मंदिर प्रबंधन ने इस परंपरा में एक कड़ी और जोड़ा है। शाही परिवार से खिचड़ी आने के बाद पर्व के अगले दिन मंदिर की ओर से राज परिवार को विशेष रूप से तैयार किया गया महारोट का प्रसाद भेजा जाता है। देशी घी और आटे से बनाए जाने वाले इस प्रसाद को नाथ पंथ के योगी ही तैयार करते हैं। खिचड़ी पर एक महीने का मेला मकर संक्रांति यानी खिचड़ी से गोरखनाथ मंदिर परिसर में एक महीने तक चलने वाले मेले की शुरुआत होती है। मेले का यह सिलसिला महाशिवरात्रि तक चलता है।
मेले में छोटे- बड़े झूलों और मनोरंजन के पंडालों की छटा देखने लायक होती है। खान-पान की अस्थाई दुकानें और ठेले मेले का अन्य आकर्षण होते हैं। सामाजिक समरसता मेले की खूबी है वैसे तो गोरखनाथ मंदिर हिन्दूओं की आस्था का केंद्र है लेकिन जानकार आश्चर्य होगा कि मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले को लेकर मुस्लिम समाज में भी उतना ही उत्साह रहता है, जितना कि हिन्दू समाज में। मेले की आधा से ज्यादा दुकानें और ठेले मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा लगाए जाते हैं। मेले का लुत्फ उठाने में भी इस समाज के लोग पीछे नहीं रहते। इसके चलते मेले को सामाजिक समरसता के मिसाल के रूप में भी देखा जाता है। मेले की तैयारी जोर शोर से चल रहा है। इस मेले मे सर्कस ,झूला तरह तरह के दुकान लगाये जाते है जिसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है। सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम भी पुलिस प्रशासन द्वारा भारी मात्रा मे किया जाता है।
इस संबंध में गोरखनाथ के उप पीठ चौक बाजार के व छावनी के प्रभारी बाबा त्यागी महराज ने कहा कि तैयारी पुरी हो चुकी है दुकानें सजने लगी है। दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रैन बसेरा आदि मे ठहरने की व्यवस्था प्रशासन द्वारा किया गया है।
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