दीपक बनकर तम दूर करें,
धरती जैसा हो सहिष्णु बने,
वृक्षों जैसा परोपकारी होकर
तन मन से सबका दुःख दूर करें।
समय गँवाना नही कभी,
चलते रहना है घड़ी जैसा,
निशि – वासर देते रहना
नियमित हों सूरज जैसा ।
पिपीलिकाओं सा संगठित रहें,
भोर में जग जाना ताम्रचूड जैसे,
एकाग्रता रखें बकुल की जैसी,
मेहनती बने मधु-मक्खियों जैसे।
मधुर बोल बोलें कोकिला जैसे,
वफ़ादार रहना तैनात श्वान जैसे,
पक्षी कागा की चतुराई रखकर,
काँटों के बीच रहना गुलाब जैसे।
ये कथन सनातन सभी सत्य हैं,
नीतिवचन मानिए सुभाषित जैसे,
आदित्य हम सभी के जीवन में यह
दिनचर्या हो ऋषियों के जीवन जैसे।
- कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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