पटना (राष्ट्र की परम्परा) कहते हैं भाषा हमारी मां की तरह होती है। जिससे हमारी पहचान जुड़ी होती है। जब से मानव अस्तित्व में आया तभी से किसी ना किसी रूप में वो भाषा का उपयोग कर रहे हैं। चाहे ध्वनि के रूप में हो, सांकेतिक रूप में हो या अन्य किसी भी रूप में। आज हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जानी वाली भाषा है, भारत में सबसे अधिक हिन्दी बोली जाती है। इतिहास गवाह है वही देश विकसित हुआ है जिन जिन देशों ने अपने राष्ट्रभाषा को सर्वोपरि माना है। उसका सम्मान किया है लेकिन भारत में नए पीढ़ी के लोग हिन्दी को लेकर कुछ अलग ही मान कर चले जा रहे हैं। भाषा राष्ट्र की एकता, अखंडता और विकास में अपनी एक अलग भूमिका निभाती है। यदि राष्ट्र को सशक्त और विकसित बनाना है तो, एक राष्ट्र एक भाषा लागू करना ही होगा।
ऐसा ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री ने भी कहा था, इससे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता बढ़ती है। एक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए एक भाषा होना बहुत जरूरी है। सर्वे के मुताबिक भारत में 65 फीसदी लोग हिन्दी बोलते हैं। हिन्दी की एक विशेषता है कि ये बेहद सरल होता है। आज हमारे सामने हिन्दी वक्ता के रूप में एक बड़ा उदाहरण है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में जो अपना भाषण हिन्दी में देते हैं। चाहे वो राष्ट्रीय मंच से हो या अंतरराष्ट्रीय मंच से वो जहां भी जाते हैं हिन्दी में भाषण देते हैं, क्योंकि उन्हें अच्छे से पता है अगर हर व्यक्ति, गांव, गली, मोहल्ले, टोले तक अपनी बात को पहुंचाना है तो हिन्दी में बात करना होगा। जब 1949 में पहली बार हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया, तब ये तय हुआ था कि 26 जनवरी 1965 से सिर्फ हिन्दी ही भारतीय संघ की एकमात्र राष्ट्रभाषा होगी लेकिन दुर्भाग्य है। हिन्दी पर धीरे धीरे अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ रहा है और आजतक हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया। कभी गांधीजी ने कहा था कि हिन्दी हिंदुस्तान को बांधती है। उन्होंने हिन्दी को जनमानस की भाषा कहा था लेकिन यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं कि जिस हिन्दी को हजारों लेखकों ने कर्मभूमि बनाया, जिसे कई महान स्वतंत्रता सेनानियों ने इस देश की शान बताया। उसी हिन्दी को देश की संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि राजभाषा की ही उपाधि दी गई।
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