July 6, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

समय और साँस

दो दोस्तों ने दो जगह दो बातें लिखीं,
समय, साँसे दो ही वास्तविक धन हैं,
दोनो ही निश्चित हैं दोनो ही सीमित हैं,
दोनो की दोनो बातें दो बातें बताती हैं।

समय व साँसे क्या सच में निश्चित हैं?
मैं सोचता हूँ शायद हैं भी, नहीं भी हैं,
समय कब बदले कोई नहीं जानता है,
साँसे कब उखड़ें, कोई नहीं जानता है।

मैं यह सोच रहा हूँ कि समय यदि है,
वो सही में धन हो सकता है वरना नहीं,
साँसे भी हैं, तभी वह धन हैं वरना नहीं,
बहुत भ्रमित हूँ, क्या ग़लत, क्या सही?

दोनो बातें, दो दोस्तों ने स्पष्ट हैं कही,
कैसे कहूँ कि उनकी बातें हैं नहीं सही,
तो चलो, अब और दोस्तों से पूँछता हूँ,
आदित्य बतायें, क्या ये सच हैं सही।

जैसे केबीसी में अमिताभ जी कहते हैं
कि”आपका समय शुरू होता है अब”,
और दर्शकों की साँसे थम जाती हैं,
खिलाड़ी की साँस धड़कने लगती हैं।

तो दोस्तों, समय और साँसे दोनो ही,
अलग अलग तरह से ही पेश आती हैं,
आदित्य इसीलिए तो भ्रमित हो रहा हूँ,
समय, साँसों को न समझ पा रहा हूँ।

पाठकों से निवेदन कर रहा हूँ,
मुझे इस भ्रम से बाहर लाइये,
समय और साँसे निश्चित हैं या,
अनिश्चित,’आदित्य’ समझाइये।

  • कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’