June 18, 2025

राष्ट्र की परम्परा

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नाथ योग साधना का मार्ग है: प्रो. संतोष कुमार शुक्ल

डीडीयू के गोरक्षनाथ शोधपीठ में भारतीय ज्ञान परंपरा: नाथ योग विषयकआनलाईन संगोष्ठी संपन्न

गोरखपुर (राष्ट्र की परम्परा)। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन के संरक्षकत्व में महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ द्वारा ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा: नाथ योग विषय पर आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ कार्यक्रम समन्वयक डॉ. कुशलनाथ मिश्र के द्वारा मुख्य वक्ता के परिचय एवं प्रस्ताविकी से हुआ।
व्याख्यान के मुख्य वक्ता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन विभाग से प्रो. संतोष कुमार शुक्ल रहे।
प्रो. शुक्ल ने भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में नाथ योग के विविध पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए गोरखबानी एवं गोरखनाथ के संस्कृत साहित्य के आधार पर नाथ योग के तत्वों को व्याख्यायित किया। प्रो. शुक्ल ने बताया कि नाथ योग साधना का मार्ग है। उन्होंने मुक्ति की चर्चा करते हुए कहा कि नाथ योग का चरम लक्ष्य अलख निरंजन है। मन की स्थिरता के बिना मोक्ष नहीं हो सकता। अमनस्क होने पर ही हम संबोध व अलख निरंजन को सिद्ध कर सकते हैं।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि शरीर शुद्धि महत्त्वपूर्ण है। इससे प्राणायाम की तीव्रता बढ़ती है, जिस कारण बिंदु उर्ध्वकर्षण हो पाता है। उन्होंने योगियों के जीवन लक्षण के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि चार प्रकार के योगियों के बारे में नाथ संप्रदाय में संदर्भ मिलते हैं। यथा आरंभ योगी, घट योगी, परिचय योगी तथा निष्पत्ति योगी। उन्होंने प्रत्येक योगी के आचार व विचार के बारें विस्तार से चर्चा किया।
आनलाइन व्याख्यान का संचालन शोधपीठ के रिसर्च एसोसिएट डॉ. सुनील कुमार द्वारा किया गया। शोधपीठ के सहायक निदेशक डॉ. सोनल सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
शोधपीठ के सहायक ग्रन्थालयी डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, शोध अध्येता हर्षवर्धन सिंह, कुंवर रणंजय सिंह सहित नेपाल से प्रो. भागवत ढकाल, डा. सुधाने के साथ ही विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य सहित डॉ. लक्ष्मी मिश्र, डॉ. आमोद राय, डॉ. कुलदीपक शुक्ल, डॉ. रंजन लता, सुधीर तिवारी आदि जुड़े रहे।