July 6, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

नव वंदना

वसन्त पंचमी है शाश्वत शुभ दिन,
माँ सरस्वती श्वेतवस्त्र में ख़ुश हैं,
पीली सरसों प्रफुल्लित उपवन में,
शिशिर जगाता है, वसंत निद्रा में।
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।

सुर सुगम्या वागवरदा, वीणावादिनि,
शारदा माँ कंठ वसना, सुस्वरदायिनि,
सरस्वती, सप्त सरगम सिद्धिदायिनि,
श्वेतवस्त्रालंकृता, माँ बुद्धि दायिनि।
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।

माधुर्य प्रसाद दे, सुरम्य स्वभाव दे,
सुशील सुमित्र दे, सुबुद्धि सुहास दे,
सुपिंगल पाठ दे माँ विवेक विचार दे,
विनय सुनीति दे, हे देवि माँ शारदे।
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।

भारत भुवन में है भव्य भाव भारती,
भक्ति शक्ति दे, उतारें तव आरती,
श्रद्धा ज्ञान दे, नम्रता का स्थान दे,
योग्यता मान दे, हे मातु सम्मान दे।
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।

मातु कर दे अब दया, दे दीजिये वर,
तार सरगम हों सुगम हो जायँ झंकृत,
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।
रचना रचो माँ, आदित्य करते अर्चना,
नवताल हों, नवछंद हों, नवल वंदना।

कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ