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छब्बीस जनवरी गणतंत्र दिवस है,
भारत मना रहा खुब धूम धाम से,
डंका बजा रहा भारत है दुनिया में,
लहराता दिख रहा तिरंगा चाँद से।
छब्बीस जनवरी सन् पचास को
पूर्ण स्वतंत्रता भारत ने पायी थी,
सत्य – अहिंसा और शान्ति की,
क़ौमी आवाज़ साकार हुई थी।
गाँधी, नेहरू, सुभाष, सावरकर,
सरदार पटेल मिल साथ लड़े थे,
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू,
फाँसी का फन्दा चूम झूल गये थे।
अल्फ़्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद,
जब घिर गये अंग्रेजों की सेना से,
पर हाथ न अंग्रेजों के वह आये थे,
ख़ुद को गोली मार प्राण दिये थे।
भारत की आज़ादी के लाखों लाख
दीवाने रंग दे वसंती चोला गाते थे,
निर्भीक शान से तिरंगा लहराते थे,
तन मन धन सब कुछ वार किये थे।
लाल बाल और पाल सहित सब
दीवानों ने गोरों की लाठी खाई थी,
स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार हमारा
के नारे से उनकी शामत बन आई थी।
असहयोग आंदोलन, अंग्रेजों
भारत छोड़ो और नमक सत्याग्रह,
साइमन कमीशन वापस जाओ,
पार्लियामेंट में धमाके का विग्रह।
डर कर भारत से भाग गए गोरे,
उनकी साँस रुकी लन्दन जाकर,
पर कूट चाल चल गये वह अपनी,
भारत और पाकिस्तान बाँट कर।
भारतवर्ष हमारा अब विश्वगुरु है,
पाकिस्तान का निकला दीवाला,
श्रीरामलला का मंदिर वहीं बना है,
आदित्य अवध सनातन की शाला।
कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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