अज्ञातवास के दौरान राजा विराट के भवन से लौटते समय पांडवों ने मां बन शक्ति की यहां पर की थी आराधना
पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भक्त भक्त अपनी मुरादें लेकर आते हैं
डॉ सतीश पाण्डेय व नीरज मिश्र की रिपोर्ट
महराजगंज (राष्ट्र की परम्परा)।जनपद के नौतनवां नगर की आराध्य देवी माता बनैलिया का स्थापना दिवस बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया। इस अवसर पर मन्दिर परिसर से भजन कीर्तन एवं मनमोहक झांकियों के साथ भव्य शोभायात्रा निकाला गया नौतनवा नगर पालिका अध्यक्ष बृजेश मणि त्रिपाठी अपने देख- रेख में नगर का विशेष रूप से साफ सफाई कराया इसके उपरान्त अटल चौक पर स्टाल लगाकर शोभायात्रा में शामिल सभी श्रद्धालुओं में विधायक नौतनवा ऋषि त्रिपाठी एवं पालिका अध्यक्ष बृजेश मणि त्रिपाठी ने फल वितरण किया और श्रद्धालुओं का स्वागत करते हुए पुष्प वर्षा किया।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा को जोड़ने वाले नगर नौतनवां में वन देवी अर्थात मां बनैलिया के नाम से विख्यात मंदिर स्थित है। मंदिर के इतिहास के सम्बंध में बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान राजा विराट के भवन से लौटते समय पाण्डवों ने मां वन शक्ति की यहां पर अराधना किया था। जिससे प्रसन्न होकर मां ने पिण्डी स्वरूप में पाण्डवों को दर्शन दिया। कालांतर में मां की पिण्डी खेतों के बीच समाहित हो गई। एक दिन खेत जोत रहे किसान केदार मिश्र को स्वप्न में मां ने कहा कि यहां पर मेरी पिंडी खोजकर मेरे मंदिर का निर्माण करो। इसके बाद केदार मिश्र ने सन 1888 में यहां पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया। जो आज विशालकाय मंदिर के रूप में स्थापित हो चुका है। जिसकी स्थापना 20 जनवरी 1991 को विधि पूर्वक हुई। प्रतिवर्ष इस दिन को वार्षिकोत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यहां पर आने वाले हर भक्त की मुरादें मां पूरा करती है। चूंकि मां को हाथी बहुत पसंद है, इसलिए मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर हाथी की मूर्ति चढ़ाते हैं।
इस मन्दिर का निर्माण वृताकार अरघा नुमा संरचना है, जिसके अंदर मां के नौ स्वरूपों को स्थापित किया गया है। केन्द्र में मां बनैलिया की भव्य प्रतिमा शोभायमान है। मंदिर वर्ताकार होने के कारण मां का परिक्रमा मंदिर के अंदर ही किया जाता है।
मंदिर पहुंचने के लिए रेल एवं सड़क दोनो मार्गों से साधन उपलब्ध है। गोरखपुर से चलकर नौतनवा आने पर रिक्शा एवं आटो की मदद से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर पर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पर देश के कोने-कोने एवं नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं। मंदिर परिसर में तीर्थ यात्रियों के रात्रि निवास की व्यवस्था भी की जाती है।
वर्ष 1938 में पुजारी रामप्यारे दास आए और 1946 तक पुजारी रहे। दूसरे पुजारी रामप्रीत दास 1946 से 1959 तक रहे। तीसरे पुजारी कमलनाथ 1959 से 1973 तक रहे। चौथे पुजारी महातम यादव 1973 से 1996 तक रहे। उसके बाद पुजारी काशी दास 1996 में आए और 9 वर्ष तक रहे। इन्हीं के देखरेख में पुराने मंदिर के जगह नए मंदिर व नई प्रतिमा का निर्माण हुआ।
20 जनवरी 1951 को नई मूर्ति स्थापित किया गया। तभी से मंदिर परिसर में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। अब तक 32 वां वार्षिक उत्सव मनाया जा चुका है। वार्षिकोत्सव के दौरान समाज के हर वर्ग के लोगों का सहयोग मिलता है। मंदिर परिसर से भव्य शोभा यात्रा निकली है। इस दौरान सभासद धर्मात्मा जायसवाल, अनिल मद्धेशिया, सुरेंद्र बहादुर जायसवाल, अजय दुबे, अनिल जायसवाल ,लालू जायसवाल ,जयप्रकाश मद्धेशिया, अभय कुमार, संजय पाठक, अशोक रौनियार, विशाल जायसवाल ,राकेश जयसवाल, दुर्गेश कुमार, राहुल दुबे ,संजय मौर्य सहित भारी संख्या में श्रद्धालुओं का बहुत बड़ा हम उपस्थित रहा।
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