March 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

मेरी छत पर ये तिरंगा रहने दो

मेरा दीपक हवा के खिलाफ
कैसे और क्यों कर जलता है,
क्योंकि मैं तो अमन पसंद हूँ,
मेरे शहर में शोर मत मचाओ,
जाति धर्म के रंग में मत बाँटो
मेरी छत पर ये तिरंगा रहने दो।

रावण दहन के पहले रावण का
निर्माण हम सब स्वयं करते हैं,
आश्चर्यजनक है कि अपने अंदर
छिपे रावण को नहीं देख पाते हैं।

हमारा गर्व, हमारा लोभ और मोह
हमारी ईर्ष्या, जलन और बैरभाव,
हम में से कोई भी नहीं देख पाते हैं,
रावण का पुतला बनाकर जलाते हैं।

लंकेस को अतिशय बल गर्व था,
देव, दानव, गंधर्व बस में किये था,
ऋषियों, मुनियों, पशु-पक्षियों की
नर, नाग सबकी राह रोके खड़ा था।

त्रिलोक द्रोही था दशानन गर्व में,
आकंठ था डूबा हुआ वह पाप में,
श्रीराम श्री हरि विष्णु के अवतार थे,
समर विजयी मर्यादा पुरुषोत्तम थे।

अपने अंदर बने रावण के पुतले को
आओ हम श्रीराम बनकर के जलायें,
आदित्य मर्यादा पुरुष बनकर अब
हम सभी अपनी मर्यादा भी निभायें।

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ