
भूखे भजन न होहिं गोपाला
भूखे भजन न होहिं गोपाला।
ले तेरी कंठी ले तेरी माला ॥
कोई कैसे यह बात मान ले।
कोई कैसे कोई वृत रख ले।
आज निर्जला वृत है महिलाओं का,
पूरा दिन परिवृता वह निराहार रहेंगी,
भूखी दिन भर रहकर पति की रक्षा का
वह दिन भर ईश्वर का भजन करेंगी।
खुद वह भूखी प्यासी होंगी
सबका भोजन तैयार करेंगी,
शायद ही कोई उनमें होगा,
यह निर्जल वृत नहीं रहेंगी।
उसकी कंठी, उनकी माला,
उसका सुखी परिवार ही है,
जिसकी रक्षा ख़ातिर वो सारा
जीवन ईश्वर से प्रार्थना करती है।
भजन भी होंगे भाव भी होंगे,
घर बाहर के काम भी होंगे,
भूख भी होगी, गोपाल भी होंगे,
आदित्य कंठी और माल भी होंगे।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
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