
पत्थर रगड़ इंसान ने आग था खोजा
और इंसान इंसान से ही जलने लगा,
बिना कपड़ों के बहुत इंसान देखे हैं,
उनके तन पर लिबास भी नही होता ।
बहुत से धनवान देखे जिनके सुंदर से
लिबास के अंदर इन्सान नहीं होता,
प्रभू तेरी दुनिया में कोई हालात नहीं,
तो कोई जज़्बात भी नहीं समझता ।
हाँ यह कितनी बड़ी अजीब बात है,
इंसान इंसान में है कितना फ़र्क़ कि,
कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है,
तो कोई पूरी किताब नहीं समझता।
माना प्यार व जंग में सब जायज़ है,
पर जंग से दूर प्रेम में इस क्षमता को
लोक कल्याण में लगाना चाहिए हर
धर्म, जाति हर इंसान की ममता को।
लगाव हैं तो घाव भी तो दिए जाते हैं,
चाहे जितना भुलाओ याद आते हैं,
रिश्ते रिश्ते में नज़दीकी उतनी तो हो
आदित्य जैसे प्रेम से निभाये जाते हैं।
•कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
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