

बालिका दिवस पर विशेष
कभी बने है छाँव तो, कभी बने हैं धूप !
सौरभ जीती बेटियाँ, जाने कितने रूप !!
जीती है सब बेटियाँ, कुछ ऐसे अनुबंध !
दर्दों में निभते जहां, प्यार भरे संबंध !!
रही बढाती मायके, बाबुल का सम्मान !
रखती हरदम बेटियाँ, लाज शर्म का ध्यान !!
दुनिया सारी छोड़कर, दे साजन का साथ !
बनती दुल्हन बेटियाँ, पहने कंगन हाथ !!
छोड़े बच्चों के लिए, अपने सब किरदार !
माँ बनती है बेटियाँ, देती प्यार दुलार !!
माँ ,बहना, पत्नी बने, भूली मस्ती मौज !
गिरकर सम्भले बेटियाँ, सौरभ आये रोज !!
कदम-कदम पर चाहिए, हमको इनका प्यार !
मांग रही क्यों बेटियाँ, आज दया उपहार !!
✍ प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
More Stories
सबको ख़ुश रख पाना मुश्किल काम
जाति और धर्म भाषा के नाम पर हम लड़े और लड़ कर बिखरते रहे
राम-कृष्ण की जन्मभूमि