
मेरी रचना, मेरी कविता
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राष्ट्रप्रेम का भाव भरा है हर इक
भारतवासी के तन के रोम रोम में,
जहाँ तिरंगा ध्वज बन जाता है,
सफ़ेद मूली, गाजर व हरी मिर्च में।
हर घर तिरंगा का नारा गूंज रहा है,
गली गली में ठेलों और रेहड़ियों में,
हर गरीब में हर अमीर में राष्ट्रवाद है,
“आज़ादी के अमृत महोत्सव” में।
राजनीति है नहीं यहाँ कोई
यह कोई नहीं कह सकता है,
मुख्यमंत्री स्तीफ़ा देकर फिर
से मुख्यमंत्री भी बन सकता है।
न्यायपालिका, कार्यपालिका,
विधायिका के हैं यह खिलवाड़,
चौथा स्तम्भ भी है खड़ा देखता,
उसने बंद कर लिये हैं सब किवाड़।
आज इंडिया के नेता जी जो हैं,
कल एनडीए के वे माननीय हैं,
कुर्सी और सत्ता की चाहत में,
इनका कोई भी सिद्धांत नही है।
बीस करोड़ घरों में भारत के
तिरंगा झंडा ऊँचे लहराएगा,
पच्चीस रुपये से सौ रुपए तक
भी लेकर कोई कोई कमायेगा।
जन गण मन के अधिनायक,
हे! शान तिरंगे की रख लेना,
आदित्य भारत के जनमानस में,
मान सम्मान तिरंगे का रख लेना।
● कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’
लखनऊ
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