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पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस को
मेरा भारत आज़ाद हुआ था,
सत्य-अहिंसा और शांति का
क़ौमी नारा साकार हुआ था।
गाँधी, नेहरू, सुभाष, सावरकर,
सरदार पटेल मिल साथ लड़े थे,
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु,
फंदा चूम फाँसी पर झूल गये थे।
आज़ाद चन्द्रशेखर अल्फ़्रेड पार्क
में जब घिर गये गोरों की सेना से,
वह हाथ नहीं दुश्मन के आये थे,
ख़ुद को गोली मार प्राण दिये थे।
लाखों दीवाने इस आज़ादी के थे,
रंग दे बसंती चोला, गाते गीत चले थे,
बेधड़क शान के साथ तिरंगा लहराते,
अपना तन मन धन सब वार किये थे।
लाल, बाल औ पाल सरीखे दीवाने,
आज़ादी के, लाठी अंग्रेजों की खाई,
स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार हमारा,
का नारा, अंग्रेजों की शामत बन आई।
अंग्रेजों भारत छोड़ो, असहयोग
आन्दोलन और नमक सत्याग्रह,
साइमन कमीशन वापस जाओ,
पार्लियामेंट में धमाके का विग्रह।
डर कर भागे भारत से गोरे सारे,
उनकी साँस रुकी लंदन जाकर,
जाते जाते अंग्रेजों ने भारत को बाँटा,
दो देशों में, भारत-पाक बना डाला।
आदित्य कोहिनूर ले गये साथ अपने,
सोने की चिड़िया, शिकार कर डाला,
फिर भी तो अब भारत विश्व गुरु है,
पाकिस्तान का निकला है दीवाला।
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
लखनऊ
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