March 14, 2025

राष्ट्र की परम्परा

हिन्दी दैनिक-मुद्द्दे जनहित के

समय का पहिया ऐसे ही घूंमेगा यह जरूरी तो नहीं

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हमारी सोच तुम्हारी ख्वाहिश हो यह जरूरी तो नहीं।
ख्वाहिशें सारी कर दूँगा पूरी यह भी जरूरी तो नहीं।।

वादा करता रहा और निभाया भी भरसक उसे मैंने।
निभाने की वजह रही वाजिब हरदम जरूरी तो नहीं।।

उनके हर सितम और जुल्म सदा हंसकर सहा हमने।
सहलूंगा इस बार वही यातनाएं यह जरूरी तो नहीं।।

बिन भरे जो जख्म रह गये थे सीने में दर्द उसका है।
दर्द का एहसास उन्हे रहा होगा यह जरुरी तो नहीं।।

देता रहा सन्देश वर्षों से लिखकर मैं श्वेत पन्नों पर ही।
आख़िरी संन्देश मेरा पन्ने पर ही होगा जरूरी तो नहीं।।

निवेदन सलीके से करने को ही सोच के निकला था।
सुनेगें सहजता से आप आशा करना जरूरी तो नहीं।।

खुरचते रहे आइने पर लगे दाग को उसदिन बल भर।
एहसास चेहरे धोने का आये उन्हे ये जरूरी तो नहीं।।

था “दंम्भ” जिसमें जीता रहा जीवन भर प्रमोद सदा।
समय का पहिया ऐसे ही घूंमेगा यह जरूरी तो नहीं।।

● डा. प्रमोद कुमार त्रिपाठी