Friday, November 14, 2025
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फिर भी नया साल है

कबूतर ने गुंटरगूं करते हुए
नए वर्ष की आहट दी।
चंहचहाती हुई चिड़ियों ने
मुंडेर पर आकर
घोंसले में बैठे हुए
नन्हीं सी जान के लिए
दानों की हिफाजत की।
बेरोजगारों ने नौकरियों के लिए
नेटवर्क तलाशे
विद्यार्थियों ने तलाश की संभावनाएं।
नदियों ने स्वच्छ जल तलाशे
कालेपन का केंचुल पहनाने वालों को
नदियों ने सांप संबोधित किया
जहरीले पानी के बहाव से
नदियां चली हैं डसने
विषयुक्त नदियां
और जिम्मेदार भी हम ही हैं।
दूषित हवाओं की लपटों से
सांस लेना हुआ है दूभर।
पहाड़ भी पिघलने लगे हैं और
हम भी करवट बदलने लगे हैं
सोचकर यह कि
अब आंदोलनों के दिन
लदने लगे हैं।
पूंजीवादी अस्त्रों के बीच
एक सिहरन है जो आदमीयत को ठिठुराती है
जमाती है चेतना पर बर्फ।
पूंजीवादी हथियारों का चाबूक
नई पेंशन लेने के लिए कर रहा है विवश
तमाम आशंकाओं के बीच
हम चुप हैं
एक चुप हजार चुप
आंखें लाल हैं
हम बदहाल हैं
संगठित अपराध है
महंगाई का मीटर चालू है,
फिर भी नया साल है।
सीताराम का नाम है
चुनावी वैतरणी पार है
मंदिरों में घंटा है।
दोनों हाथ उठाओ
बोलो
हर हर महादेव शंभू
काशी विश्वनाथ गंगे
का ही जयगान है।
नया नया साल है।

रचयिता: विनय कांत मिश्र

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