युवाओं का भविष्य खतरे में: बढ़ती बेरोजगारी, मानसिक तनाव और अपराध की ओर बढ़ता समाज
शशांक भूषण मिश्र द्वारा राष्ट्र की परम्परा के लिए
भारत आज जनसंख्या के युवा बहुल राष्ट्रों में गिना जाता है, लेकिन यही युवा वर्ग जब रोजगार के लिए भटकने लगता है तो वही शक्ति एक गंभीर सामाजिक समस्या का रूप ले लेती है। तेजी से बढ़ती Youth Unemployment in India (भारत में युवा बेरोजगारी) अब केवल एक आर्थिक समस्या नहीं रही, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य और अपराध दर से भी गहराई से जुड़ चुकी है। हालात ऐसे बन गए हैं कि लाखों शिक्षित युवा डिग्री हाथ में लेकर भी खाली बैठे हैं, जिससे उनके भीतर निराशा, हताशा और अवसाद तेजी से बढ़ रहा है।
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रोजगार के सीमित अवसर और प्रतियोगिता की अत्यधिक दौड़ ने युवाओं को मानसिक रूप से कमजोर कर दिया है। जब वर्षों की पढ़ाई के बाद भी नौकरी नहीं मिलती, तो आत्मविश्वास डगमगा जाता है। कई मामलों में युवा खुद को समाज और परिवार पर बोझ समझने लगते हैं। यही मानसिक दबाव उन्हें गलत निर्णयों की ओर भी धकेल सकता है। Youth Unemployment in India के कारण बढ़ता अवसाद अब एक “मूक महामारी” की तरह फैल रहा है, जिस पर समाज और सरकार दोनों को गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
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विशेषज्ञों के अनुसार, बेरोजगारी और अपराध के बीच सीधा संबंध है। जब किसी के पास आय का साधन नहीं होता और ज़रूरतें बढ़ती हैं, तो कुछ लोग अवैध रास्तों को अपनाने से भी नहीं हिचकते। चोरी, साइबर अपराध, नशे का कारोबार और छोटे-मोटे आपराधिक कार्यों में युवाओं की भागीदारी का एक बड़ा कारण रोजगार की कमी भी है। Youth Unemployment in India समाज के भीतर असंतोष को जन्म देता है और यही असंतोष अपराध के रूप में सामने आने लगता है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है। यहां रोजगार के साधन पहले से ही सीमित होते हैं। खेती पर निर्भरता घट रही है और उद्योगों की कमी के कारण युवा शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। लेकिन शहरों में भी नौकरियों की मारामारी है। इससे झुग्गी-झोपड़ी, असमानता और सामाजिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है, जिसका सीधा असर कानून-व्यवस्था पर पड़ता है।
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बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकार की योजनाएं मौजूद हैं, जैसे स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और मेक इन इंडिया, लेकिन वास्तविक स्तर पर इनका लाभ हर युवा तक नहीं पहुंच पाता। आवश्यकता है कि शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुख बनाया जाए और युवाओं को केवल डिग्री नहीं, बल्कि कौशल भी दिया जाए। Youth Unemployment in India को कम करने के लिए निजी क्षेत्र, शिक्षा संस्थानों और सरकार के बीच बेहतर समन्वय ज़रूरी है।
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साथ ही मानसिक स्वास्थ्य को भी उतनी ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए जितनी शारीरिक स्वास्थ्य को मिलती है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर काउंसलिंग, करियर गाइडेंस और मोटिवेशनल प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए ताकि युवा खुद को अकेला न समझें। अगर आज समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में यही बेरोजगारी एक बड़े सामाजिक विस्फोट का कारण भी बन सकती है।
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युवाओं की ऊर्जा अगर सही दिशा में लगाई जाए, तो यही देश की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। लेकिन अगर Youth Unemployment in India जैसी समस्या अनदेखी होती रही, तो यह भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
