🕉️ जब धर्म डगमगाने लगे: देवताओं की पीड़ा और पृथ्वी की पुकार
समय का पहिया युगों की गति से घूमता रहा, परंतु एक काल ऐसा आया जब असुरों का प्रभाव अत्यधिक बढ़ गया।
पृथ्वी देवी (भूमि) पीड़ा से व्याकुल हो उठीं।
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असुरी शक्तियों के अत्याचार से –
वन नष्ट हो रहे थे।नदियाँ रक्तरंजित हो रही थीं।
देवता तक अपनी शक्ति खोते प्रतीत हो रहे थे।
तभी पृथ्वी देवी ब्रह्मा जी के पास पहुँचकर करुण स्वर में बोलीं—
“प्रजापति! मेरे गर्भ में पाप और अत्याचारों का बोझ बढ़ता जा रहा है। मेरी संतुलित गति बाधित हो रही है। कृपा कर कोई मार्ग दिखाएँ।”
ब्रह्मा जी चिंतित हुए। वे स्वयं प्रजापति होकर भी समाधान ढूंढने में असमर्थ थे।
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तब एक ही मार्ग था—क्षीरसागर की ओर प्रस्थान, जहाँ शेषनाग के शैय्या पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में स्थित थे।
🕉️ क्षीरसागर का दिव्य दर्शन और ब्रह्मा का निवेदन।
ब्रह्मा, देवताओं और पृथ्वी देवी के साथ क्षीरसागर पहुँचे।
सागर लहरों में दिव्यता छलक रही थी।
श्वेत जल की झिलमिलाहट मानो सृष्टि की हर धड़कन को व्यक्त कर रही थी।
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देवताओं ने स्तुति की—
“नारायण! जगतपालक! अब आपकी ही शरण है। धर्म रक्षण के बिना लोकों की व्यथा समाप्त नहीं होगी।”
इसके बाद क्षीरसागर में तरंगों के मध्य एक दिव्य प्रकाश उदित हुआ।
भगवान विष्णु प्रकट हुए।
उनके चार भुजाओं से प्रकट तेज ने देवताओं के मन को शांत कर दिया।
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विष्णु भगवान मुस्कुराए और कहा—
“देवताओं, घबराओ नहीं। सृष्टि जब-जब असंतुलित होती है, मैं अवतार लेकर संतुलन स्थापित करता हूँ। यह मेरा संकल्प है, सनातन प्रतिज्ञा है।”
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🕉️ अवतार का संकेत: त्रेतायुग का द्वार खुला
पृथ्वी देवी ने अपने कष्टों का वर्णन किया।
विष्णु भगवान ने ध्यानपूर्वक सुना और बोले—
“असुरों का अभ्युदय काल समाप्त होने वाला है। अधर्म पर प्रहार करने के लिए मैं स्वयं मनुष्य रूप लेकर पृथ्वी पर अवतरित होऊँगा। देवता अपने अंश अवतार लेकर मेरा सहयोग करेंगे।”
देवताओं को भविष्य के संकेत मिल चुके थे, परन्तु यह स्पष्ट न था कि भगवान किस रूप में अवतार लेंगे।
क्षितिज पर नई आशा जग चुकी थी।
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यही वह दिव्य क्षण था जब त्रेतायुग में भगवान विष्णु के राम अवतार की लीला का बीज अंकुरित हुआ।
कथा का यह प्रसंग केवल अवतार का संकेत नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि—
सृष्टि में अन्याय कितना भी बढ़ जाए अधर्म कितना भी प्रबल हो जाए।परंतु भगवान का संरक्षण निश्चय ही मानवता को प्रकाश की ओर ले जाता है
🕉️ देवताओं का आश्वासन और ब्रह्मांड में नई ऊर्जा का संचार
विष्णु भगवान की वाणी सुनकर देवताओं के मन से बोझ उतर गया।
पृथ्वी देवी प्रसन्न हुईं।
क्षीरसागर की लहरों में मानो नए युग के आगमन का संगीत बह रहा था।
देवताओं ने प्रणाम कर कहा—
“नारायण! आपके अवतरण मात्र से अनिष्ट शक्तियाँ कंपकंपाने लगती हैं। हम आपके मार्गदर्शन में धर्म के पथ पर अग्रसर रहेंगे।”
उधर, असुरों के महलों तक यह आभास पहुँच चुका था कि देवताओं को कोई अदृश्य शक्ति प्राप्त हो रही है।
लेकिन यह दिव्य योजना ऐसी थी जिसे कोई असुर जान भी ले, तो रोक नहीं सकता था।
🕉️ कथा का संदेश: हर संकट का अंत होता है
यह प्रसंग हमें यह सीख देता है कि—
कठिन समय में भी आशा का दीप बुझने नहीं देना चाहिए,सृष्टि में संतुलन सदैव पुनः स्थापित होता है।जब अन्याय और अत्याचार चरम पर पहुँच जाते हैं, तब ईश्वरीय शक्ति स्वयं मार्ग प्रशस्त करती है।
विष्णु भगवान की यह शास्त्रोक्त कथा केवल धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर धैर्य, विश्वास और कर्म का पथ दिखाती है।
