नवनीत मिश्र
राष्ट्रीय प्रेस दिवस केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की उस धड़कन का जीवंत प्रमाण है जो समाज को जागरूक, सतर्क और संवेदनशील बनाए रखती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्र, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे मजबूत प्रहरी है। पत्रकारिता ही वह आईना है जिसमें सत्ता अपनी छवि देख सकती है और समाज अपनी वास्तविकता पहचान सकता है। लोकतंत्र के चार स्तंभों में प्रेस को इसलिए विशिष्ट स्थान मिला है क्योंकि वह शासन और जनता के बीच पारदर्शिता का सेतु बनता है। पत्रकार केवल खबर नहीं लिखते, बल्कि विचारों का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वे सत्ता से सवाल पूछते हैं, सामाजिक विसंगतियों को उजागर करते हैं और आम जन की समस्याओं को व्यवस्था के दरवाज़े तक पहुँचाते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता जब निर्भीक होती है, तो भ्रष्टाचार, अन्याय और अत्याचार कहीं छुप नहीं पाते। पत्रकार की सबसे बड़ी ताकत उसकी यह क्षमता है कि वह बड़ी जटिल बात को कुछ सरल और छोटे शब्दों में जनसामान्य तक पहुँचा देता है। यह केवल कौशल नहीं, बल्कि अनुभव, ईमानदारी और जिम्मेदारी का संगम है। पत्रकारिता एक पेशा भर नहीं, सत्य के प्रति दृढ़ निष्ठा का व्रत है। उनकी लेखनी इसी संकल्प से चलती है कि तथ्य बिना डर, बिना दबाव और बिना भेदभाव के जनता तक पहुँचे। 1966 में प्रेस परिषद की स्थापना के बाद यह दिवस मनाया जाने लगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मीडिया अपनी गरिमा, विश्वसनीयता और नैतिक दायित्व को हमेशा कायम रखे। यह दिन उन पत्रकारों को सलाम करने का अवसर है जो विपरीत परिस्थितियों, खतरों और सीमित संसाधनों के बीच भी सच की खोज में लगे रहते हैं। कई पत्रकार कठिन मैदानों, आपदाओं और संघर्ष क्षेत्रों में काम करते हुए अपनी जान जोखिम में डालकर भी समाज को सही जानकारी उपलब्ध कराते हैं। सदैव कहा गया है कि पत्रकार का एकमात्र धर्म सत्य है। निर्भीक पत्रकार ही वह आवाज़ बनता है जो कमजोर और वंचित तबकों की बात सत्ता के गलियारों तक पहुँचा सके। इसलिए यह चेतावनी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि “जहां प्रश्न पूछना बंद हो जाए, वहां लोकतंत्र सांसें गिनने लगता है।” और प्रश्न पूछने का यह साहस पत्रकारिता ही प्रदान करती है। आज डिजिटल युग में पत्रकारिता अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है, फेक न्यूज़, ट्रोल की संस्कृति, सूचना का अतिशय प्रवाह, मीडिया ट्रायल और आर्थिक दबाव। ऐसी परिस्थितियों में सत्यनिष्ठ पत्रकारिता का महत्व और बढ़ जाता है। जरूरत है कि मीडिया अपनी मूल आत्मा—निष्पक्षता, सटीकता और संवेदनशीलता पर अडिग रहे, तभी समाज में विश्वास की मशाल जलती रह सकती है। अंततः यही संदेश सबसे महत्वपूर्ण है कि स्वतंत्र पत्रकारिता ही सच्चे लोकतंत्र की असली पहचान और उसकी सांसों में बसने वाली शक्ति है।
