🌄 सूर्य के अद्भुत तेज़ का प्रभाव: देवों में आदर, आसुरों में भय
सृष्टि में जब सूर्य पहली बार प्रकट हुए, तब उनके तेज ने संपूर्ण त्रिलोक को चकाचौंध कर दिया।
ऋग्वेद में सूर्यदेव के तेजस्वी स्वरूप का वर्णन है ।“सूर्यो विश्वस्य भानुना प्रभा विश्चरति”
अर्थात— सूर्य अपने प्रकाश से समस्त विश्व को प्रकाशित करते हैं।
देवताओं ने सूर्य को “त्रिलोक दीपक” की उपाधि दी, क्योंकि उनका प्रकाश देव-लोक, मर्त्य-लोक और पाताल–तीनों में नई ऊर्जा लेकर आया। इसी प्रकाश ने दिन-रात के चक्र, ऋतुओं के परिवर्तन और जीवन की निरंतरता को गति दी।
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आसुरों को सूर्य का तेज असहनीय लगा, क्योंकि सूर्य की किरणें उनके मायावी और अंधकारमय अस्तित्व को कमजोर करने लगीं। पुराणों में उल्लेख है कि सूर्य के उदय से अनेक दैत्यों की शक्तियाँ घटने लगीं।
🔱 सूर्य का विवाह—संस्कार, प्रेम और कठिन परीक्षा
सूर्य उत्पत्ति के बाद उनके तेज ने न केवल देवताओं को चकित किया बल्कि संसार में नए संबंधों की नींव भी रखी। सूर्यदेव का विवाह त्वष्टा ऋषि की कन्या संज्ञा से हुआ, जो अत्यंत तेजस्विनी और गुणवान थीं।
प्रेम और विवाह के इस अध्याय में एक अत्यंत भावुक मोड़ आया—
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✨ संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर सकीं
संज्ञा सूर्य से अत्यंत प्रेम करती थीं, परंतु सूर्य का दिव्य तेज अत्यधिक बढ़ गया था। वे निरंतर क्लांत रहने लगीं। संज्ञा ने कई बार सूर्य का तेज कम करने की प्रार्थना की, पर वह जन्मजात तेज था, जिसे सूर्य स्वयं नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे।
थककर, संज्ञा ने एक कठिन निर्णय लिया—
उन्होंने छाया नामक अपनी ही छाया-प्रतिरूप को सूर्य की सेवा में छोड़ दिया और स्वयं तप करने के लिए पृथ्वी के उत्तरी क्षेत्र में चली गईं, जहाँ उन्होंने घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या शुरू की।
यह निर्णय उनके लिए भी वेदना से भरा था, और सूर्य के लिए भी एक भावनात्मक परीक्षा।
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⚡ छाया का रहस्य—देवताओं, पितरों और ग्रहों का भविष्य बदलने वाला मोड़
छाया ने संज्ञा का स्थान ग्रहण कर लिया। सूर्य भी कुछ समय तक इस रहस्य को समझ नहीं सके। छाया ने सूर्य से तीन संतानों को जन्म दिया।
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शनि,तापती,सवर्ण (गूढ़ स्वरूप)।
छाया, जो स्वभाव से कठोर थी, ने सूर्य की पिछली संतान—यम और यमुना—से असमान व्यवहार करना शुरू किया। इससे यम अत्यंत दुखी हुए और सूर्य को संदेह हुआ कि संज्ञा का स्वर बदल कैसे गया?
सूर्य ने तप करके सत्य का ज्ञान प्राप्त किया कि यह संज्ञा नहीं, बल्कि छाया है।
यह रहस्य उजागर होने पर सूर्यदेव का हृदय व्याकुल हो उठा। अपने वास्तविक प्रेम—संज्ञा—की खोज में वे तीनों लोकों में निकल पड़े।
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🐎 घोड़ा रूपी संज्ञा की तपस्या—करुणा, त्याग और माता का प्रेम
संज्ञा पृथ्वी के उत्तर में “उत्तरा कुरु” नामक स्थान पर घोड़ी का रूप धारण कर तप कर रही थीं। सूर्य अपनी योग दृष्टि से कुछ क्षण संज्ञा का दर्शन कर पाए और तुरन्त वहां पहुंचे। सूर्य ने भी घोड़े का रूप धारण किया, ताकि संज्ञा को भय न लगे।
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उनकी मिलन कथा भावनात्मक है—
सूर्य ने कहा, “हे संज्ञा! तुम्हारी अनुपस्थिति से सृष्टि का प्रकाश म्लान हो गया है। लौट आओ।”
संज्ञा ने विनम्रता से स्वीकार किया कि वह सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण चली गई थीं।
यह प्रेम, पीड़ा और भक्ति—तीनों का संगम था।
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🌞 सूर्य का तेज कम होना—सृष्टि के संतुलन की शुरुआत
संज्ञा की व्यथा सुनकर सूर्यदेव ने ब्रह्माजी से मार्गदर्शन मांगा। तब ब्रह्माजी ने सूर्य के तेज को नियंत्रित कर उनका स्वरूप मधुर, शीतल और जीवनोपयोगी बनाया।
इसी स्वरूप को बाद में सूर्य नारायण कहा गया।
यह पल सूर्य कथा का महान मोड़ था—
अब सूर्य न केवल तेजस्वी थे, बल्कि सौम्य, शांत और कल्याणकारी भी।
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🐴 अश्विनी कुमारों का जन्म—सृष्टि में आयुर्वेद और चिकित्सा ज्ञान का उदय
घोड़े के रूप में तप कर रही संज्ञा और सूर्य के संयोग से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ।
देवताओं के ये वैद्य अमरता, चिकित्सा और पुनर्जीवन की दिव्य विधाओं के जनक माने जाते हैं।
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उनके जन्म का अर्थ था—
सृष्टि को उपचार की कला मिलना और मानवता को जीवन का दूसरा अवसर प्राप्त होना।
🌞 एपिसोड 2 का सार—सूर्य की कथा केवल देवताओं की नहीं, हर जीवन की कहानी है
इस कथा के कई गहरे संदेश हैं—
तेज जब संतुलित न हो, तो दुख देता है। संतुलन ही धर्म है।
प्रेम त्याग भी मांगता है और स्वीकार्यता भी।
सूर्य का संतुलित प्रकाश ही जीवन है—अधिकता या न्यूनता दोनों विनाशकारी।सूर्य उत्पत्ति के बाद की यह कथा हमें सिखाती है कि ऊर्जा तभी कल्याणकारी होती है जब वह संयमित हो।
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