Thursday, November 13, 2025
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“ऋषि अत्रि के पुत्र से लेकर नासा के शोध तक — चंद्रमा की रहस्यमयी यात्रा”

चंद्रमा की उत्पत्ति — जब पृथ्वी से जन्मा आकाश का अमर साथी
लेखक विशेष | RKP NEWS विश्लेषण


आकाश की नीरवता में शांति का प्रतीक, प्रेम और कविता का प्रेरणास्रोत — “चंद्रमा” सदियों से मानव मन को आकर्षित करता आया है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह उजला गोला हमारे पृथ्वी परिवार में कैसे शामिल हुआ? क्या यह सृष्टि की किसी दैवी लीला का परिणाम है, या फिर अरबों वर्ष पहले हुई किसी खगोलीय दुर्घटना का चमत्कार?
इस प्रश्न का उत्तर विज्ञान और शास्त्र दोनों अपने-अपने अंदाज़ में देते हैं, और दोनों की कहानियां उतनी ही रहस्यमयी जितनी स्वयं चंद्रमा की चांदनी।

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🪐 वैज्ञानिक दृष्टि से चंद्रमा की उत्पत्ति
वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा का जन्म लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले हुआ था, जब पृथ्वी अभी युवा अवस्था में थी। उस समय अंतरिक्ष में ग्रहों और उल्काओं का निर्माण लगातार जारी था।
इसी दौरान, मंगल ग्रह के आकार का एक विशाल खगोलीय पिंड — जिसे वैज्ञानिकों ने नाम दिया “थिया (Theia)” — पृथ्वी से टकराया। यह टक्कर इतनी भीषण थी कि पृथ्वी की सतह से भारी मात्रा में पदार्थ अंतरिक्ष में उछल गया।
यह मलबा धीरे-धीरे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के आकर्षण में परिक्रमा करने लगा और समय के साथ एक स्थायी पिंड का रूप लेकर चंद्रमा बन गया।
इस विचार को वैज्ञानिक भाषा में कहा जाता है — “विशाल टक्कर सिद्धांत” (Giant Impact Hypothesis) — और यह आज चंद्रमा की उत्पत्ति का सबसे स्वीकृत वैज्ञानिक मॉडल है।

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🔬 अपोलो मिशन से मिला प्रमाण
नासा के अपोलो मिशनों ने जब चंद्रमा से चट्टानों के नमूने पृथ्वी पर लाए, तो वैज्ञानिकों ने उनका सूक्ष्म विश्लेषण किया। परिणामों ने पुष्टि की कि चंद्रमा की आयु लगभग 4.4 से 4.6 अरब वर्ष के बीच है — यानी पृथ्वी की ही उम्र के लगभग बराबर।
इन चट्टानों की संरचना पृथ्वी की सतह की चट्टानों से अत्यधिक मिलती-जुलती है, जिससे यह सिद्ध होता है कि चंद्रमा का अधिकांश भाग पृथ्वी के ही पदार्थ से बना है।
नवगठित चंद्रमा प्रारंभ में पिघली हुई अवस्था में था। समय के साथ वह ठंडा हुआ, और कम घनत्व वाली चट्टानें ऊपर आकर उसकी सतह पर एक परत के रूप में जम गईं — जिसे आज हम चंद्र भूपर्पटी (Lunar Crust) के नाम से जानते हैं।
🌙 पौराणिक कथा : जब चंद्रमा हुआ सृष्टि का पुत्र
भारतीय शास्त्रों में चंद्रमा केवल खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि एक दैवी अस्तित्व है।
ऋषि अत्रि और देवी अनसूया के पुत्र के रूप में चंद्रमा का जन्म हुआ। उनके दो अन्य भाई थे — दत्तात्रेय और दुर्वासा।
पौराणिक ग्रंथों में चंद्रदेव को सौंदर्य, शीतलता और अमर प्रेम का प्रतीक माना गया है।
देवी भागवत पुराण में उल्लेख है कि चंद्रमा स्वयं ब्रह्मा के अवतार हैं, जिन्होंने जगत में प्रकाश और लय का संतुलन बनाए रखने के लिए जन्म लिया।
दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं, जिन्हें 27 नक्षत्र कहा जाता है, चंद्रमा की पत्नियां मानी गई हैं। यही नक्षत्र आज ज्योतिषशास्त्र में समय और ग्रहों की गणना का आधार बने हुए हैं।
लेकिन कथा यह भी कहती है कि चंद्रदेव का मन केवल रोहिणी के प्रति अधिक आकर्षित था। इस कारण क्रोधित होकर दक्ष ने उन्हें क्षय रोग का शाप दिया — जिसके बाद महादेव ने चंद्र को अपने मस्तक पर स्थान देकर अमरता प्रदान की।
इसलिए आज भी हम शिव के जटाजूट में अर्धचंद्र का प्रतीक देखते हैं — जो समय और जीवन के चक्र का संकेत है।

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💫 आस्था और विज्ञान का संगम
चंद्रमा की कहानी इस बात का प्रतीक है कि विज्ञान और आस्था, विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं।
विज्ञान हमें बताता है कैसे चंद्रमा बना,
जबकि शास्त्र हमें सिखाते हैं क्यों चंद्रमा हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
एक ओर खगोलशास्त्र उसकी सतह पर नए रहस्यों की खोज कर रहा है,
तो दूसरी ओर कवि अब भी उसकी चांदनी में प्रेम और शांति के अर्थ ढूंढते हैं।
विज्ञान ने भले यह सिद्ध कर दिया हो कि चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है,
परंतु हमारे दिलों में वह अब भी भावनाओं का ग्रह है —
जो अंधकार में आशा की किरण बनकर चमकता है।

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🌌 समापन : जब पृथ्वी ने पाया अपना साथी
चंद्रमा सिर्फ अंतरिक्ष में तैरता हुआ पिंड नहीं, बल्कि पृथ्वी का पहला और सबसे पुराना साथी है।
उसके बिना पृथ्वी पर न ज्वार-भाटा होते, न ऋतुओं का संतुलन। वह हमारे जीवन की हर धड़कन में, हर कविता में, हर रात की खामोशी में शामिल है।
जब अगली बार आप रात के आकाश में चंद्रमा को देखें, तो याद कीजिए —
वह न सिर्फ आपके प्रेम का प्रतीक है, बल्कि पृथ्वी के इतिहास का जीवित साक्षी भी।

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