“आरएसएस का शताब्दी विजन: मोहन भागवत बोले – संगठित हिंदू समाज ही बनाएगा खुशहाल और शक्तिशाली भारत
नागपुर (राष्ट्र की परम्परा डेस्क)राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित दो दिवसीय लेक्चर सीरीज ‘न्यू होराइजन्स’ में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन की मूल भावना और एकल लक्ष्य को स्पष्ट रूप से सामने रखा। उन्होंने कहा कि संघ का एकमात्र उद्देश्य पूरे हिंदू समाज को संगठित और सशक्त बनाना है, ताकि भारत न केवल खुशहाल और मजबूत बने बल्कि पूरी दुनिया को धर्म और शांति का मार्ग दिखा सके।
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भागवत ने कहा, “संघ का एक ही विजन है — पूरे हिंदू समाज को एक करना, उनमें संस्कार और सामर्थ्य भरना, ताकि वे एक समृद्ध भारत का निर्माण करें। जब हिंदू समाज संगठित होगा, बाकी कार्य समाज स्वयं करेगा।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या मुसलमान आरएसएस का हिस्सा बन सकते हैं, तो भागवत ने कहा कि संघ में किसी व्यक्ति की पहचान जाति, धर्म या पंथ से नहीं की जाती। उन्होंने कहा, “संघ में न ब्राह्मण की गिनती होती है, न मुसलमान की। सभी भारत माता के बेटे हैं। मुसलमान और ईसाई भी शाखा में आते हैं, हम उनसे उनकी पहचान नहीं पूछते।”
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उन्होंने यह भी जोड़ा कि संघ में आने वाला हर व्यक्ति पहले भारत माता का पुत्र है और सभी की अलग पहचान का सम्मान किया जाता है। भागवत ने कहा कि शाखा में आने के बाद सब एक भाव से जुड़ते हैं — ‘एक भारत, एक समाज, एक संस्कृति’ के साथ।
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यह वक्तव्य ऐसे समय आया है जब आरएसएस अपनी 100 वर्ष की यात्रा पूरी कर रहा है और भविष्य की दिशा तय कर रहा है, जो संगठन के “एक भारत, शक्तिशाली भारत” के लक्ष्य को और मजबूत करता है।
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